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'2 आजाद नगर, 3 रामनगर और 2 विजय नगर...' अलवर में मनमाने तरीके से रखे कॉलोनियों के नाम, जाँच में पाए गए एक जैसे 7 मोहल्ले

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अलवर शहर में अनियोजित विकास का अंदाजा आप कॉलोनियों के नाम से लगा सकते हैं। एक ही नाम की कई कॉलोनियां हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यूआईटी ने नियोजित विकास पर ध्यान नहीं दिया और बिल्डरों ने कृषि भूमि पर प्लॉट बेच दिए और कॉलोनियों के नाम एक ही रख दिए। यानी एक के बाद एक बिल्डर ने अलग-अलग जगहों पर कॉलोनियां बना दीं, लेकिन उनका नाम एक ही रखा। लोग बस गए। अब उन्हें पत्राचार में दिक्कत आ रही है। एक ही नाम की दो से तीन कॉलोनियां होने से पत्र गलत पते पर जा रहे हैं। ऑनलाइन सामान भी गलत पते पर जा रहा है।

दो से तीन किमी के दायरे में बनी हैं एक ही नाम की कॉलोनियां
शहर के पटरी पार क्षेत्र में 17 वार्ड हैं। यहां की आबादी करीब सवा दो लाख है। इन वार्डों में ही बिल्डरों ने कई कॉलोनियां बना दी हैं। पटरी पार क्षेत्र में ही रामनगर नाम से 3 कॉलोनियां हैं। यहां के विशेष कुमार गुर्जर बताते हैं कि इनसे करीब एक किमी की दूरी पर एक और रामनगर कॉलोनी है। जब कोई व्यक्ति हमारी कॉलोनी में आना चाहता है तो लोग उसे दूसरी रामनगर कॉलोनी का रास्ता बता देते हैं। क्योंकि वहां भी रामनगर कॉलोनी है। राकेश गुर्जर आजाद नगर के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि किसी ने पटरी पार इलाके में तीन किमी दूर एक और आजाद नगर बना दिया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने बिल्डर से प्लॉट खरीदा था। अब पत्राचार गलत हो रहा है। वह यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि पार्सल वाले किस आजाद नगर में पार्सल पहुंचाएं। उन्हें परेशानी हो रही है।

ये विभाग हैं जिम्मेदार
शहर के विकास की जिम्मेदारी नगर विकास न्यास (यूआईटी) और हाउसिंग बोर्ड की है। ईंटें बिछानी हों या भवन बनाना हो, दोनों विभाग करते हैं। नागरिकों को उनकी जरूरत के हिसाब से प्लॉट उपलब्ध कराना हो या मकान बनाना हो, यह विभागों का काम है। इसके लिए विभाग लेआउट प्लान तैयार करते हैं और कॉलोनी का नाम रखते हैं। एक कॉलोनी को एक ही नाम देते हैं। अगर ये विभाग पूरे शहर में काम करते तो आज लोगों को दो-तीन कॉलोनियों के नाम रखने की समस्या नहीं होती। अवैध काम करने वाले बिल्डरों पर लगाम लगानी थी। कार्रवाई होनी थी, लेकिन उन्हें छूट दी गई और वे अवैध तरीके से लोगों को प्लॉट बेचते रहे।

यूआईटी या हाउसिंग बोर्ड जब मकान बनाता है या लोगों को प्लॉट देता है तो उस कॉलोनी का एक ही नाम होता है। उस नाम से कोई दूसरी कॉलोनी नहीं बनती। क्योंकि विभाग के पास इसकी पूरी सूची होती है, लेकिन अलग-अलग बिल्डर बिना भू-रूपांतरण के अलग-अलग जगहों पर कृषि भूमि पर प्लॉट बेचते हैं तो उसमें कॉलोनियों के नाम दोहरा दिए जाते हैं। लोगों को पत्राचार में परेशानी होती है। यूआईटी को इस पर रोक लगानी चाहिए। विभाग को भविष्य में इस ओर ध्यान देना चाहिए, ताकि अन्य लोगों के साथ ऐसा न हो।

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