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सोनार दुर्ग के बाद जैसलमेर का नया टूरिस्ट हब बनी 'पटवों की हवेली', वीडियो में खासियत जान आप भी फौरन प्लान कर लेंगे ट्रिप

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राजस्थान के मरुस्थलीय जिले जैसलमेर की पहचान अब सिर्फ सोनार किले तक सीमित नहीं रही। अब यहां का एक और ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है—‘पटवों की हवेली’। यह विशाल और भव्य हवेली समूह ना सिर्फ स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है, बल्कि जैसलमेर के समृद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक इतिहास की कहानी भी बयां करता है। पिछले कुछ वर्षों में यहां पर्यटकों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है और अब यह स्थल जैसलमेर का नया टूरिस्ट हब बनता जा रहा है।

क्या है पटवों की हवेली?
पटवों की हवेली दरअसल एक नहीं बल्कि पांच अलग-अलग हवेलियों का समूह है, जो 19वीं शताब्दी की शुरुआत में पटवा समुदाय के व्यापारी गुमानचंद पटवा द्वारा बनवाई गई थीं। इन हवेलियों का निर्माण 1805 से 1860 के बीच हुआ और यह पूरी तरह पीले बलुआ पत्थर से बनाई गईं, जिसे जैसलमेर के निर्माण का प्रमुख आधार माना जाता है।यह हवेलियाँ अपने जटिल नक्काशीदार झरोखों, पत्थरों पर बारीक कारीगरी, भित्तिचित्रों और भव्य दरवाजों के लिए मशहूर हैं। इनका स्थापत्य इतना सूक्ष्म और सुंदर है कि देखने वालों को मुग्ध कर देता है।

क्यों बनी नया टूरिस्ट हब?
पटवों की हवेली की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है इसकी बारीकी से की गई स्थापत्य कला और इसका ऐतिहासिक महत्व। पर्यटक यहां सिर्फ तस्वीरें लेने नहीं, बल्कि जैसलमेर की पुरानी व्यापारिक संस्कृति, परंपरा और स्थापत्य को करीब से देखने आते हैं।राजस्थान पर्यटन विभाग ने भी इस स्थल को और आकर्षक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। यहां गाइडेड टूर, ऑडियो विजुअल डिस्प्ले और जानकारीपूर्ण प्रदर्शनी की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा हवेलियों के एक हिस्से को संग्रहालय में बदला गया है जहां पुराने काल के कपड़े, आभूषण, घरेलू सामान और व्यापारिक दस्तावेज भी देखे जा सकते हैं।

स्थापत्य और कला की अनमोल मिसाल
पटवों की हवेलियों का स्थापत्य न सिर्फ जैसलमेर, बल्कि पूरे राजस्थान की कला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। हवेलियों की बाहरी दीवारों पर की गई नक्काशी, बलुआ पत्थर से बने जालीदार झरोखे और ऊंचे छतों के डिज़ाइन पर्यटकों को एक अलग ही युग में ले जाते हैं।यहां आने वाले पर्यटक अक्सर कहते हैं कि पटवों की हवेली को देखने के बाद "समय रुक गया है" जैसा एहसास होता है। खासतौर पर फोटोग्राफरों और इतिहास के विद्यार्थियों के लिए यह स्थान बेहद रोचक है।

हवेली से जुड़े किस्से और रहस्य
कहा जाता है कि गुमानचंद पटवा जैसलमेर के सबसे धनी व्यापारियों में से एक थे और उन्होंने अपने पांचों बेटों के लिए ये हवेलियाँ बनवाई थीं। हालांकि, कुछ किस्सों के अनुसार हवेलियों में कोई भी परिवार ज्यादा समय तक नहीं रह सका और बाद में इन्हें सरकारी देखरेख में ले लिया गया।इन हवेलियों की दीवारों में छिपे किस्से, व्यापार के दस्तावेज़ और भित्तिचित्र आज भी उस समृद्ध जीवनशैली की गवाही देते हैं जो कभी यहां के व्यापारियों ने जी थी।

जैसलमेर घूमने का प्लान क्यों बनाएं?
अगर आप जैसलमेर घूमने का विचार कर रहे हैं, तो पटवों की हवेली को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें। यहां पहुंचना बेहद आसान है। जैसलमेर रेलवे स्टेशन से यह हवेली सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। स्थानीय ऑटो, टैक्सी या पैदल चलकर भी यहां पहुंचा जा सकता है।सर्दियों का मौसम यानी अक्टूबर से फरवरी तक का समय जैसलमेर घूमने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान न सिर्फ मौसम सुहाना होता है, बल्कि जैसलमेर में डेजर्ट फेस्टिवल जैसी रंग-बिरंगी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी चलती रहती हैं।

टिकट और समय की जानकारी
पटवों की हवेली में सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक प्रवेश किया जा सकता है। भारतीय पर्यटकों के लिए टिकट लगभग ₹50 से ₹100 तक होता है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए यह शुल्क थोड़ा अधिक हो सकता है। छात्रों और वरिष्ठ नागरिकों को कुछ छूट भी दी जाती है।

आसपास के आकर्षण
पटवों की हवेली के पास ही जैसलमेर का प्रसिद्ध सोनार किला, गड़ीसर झील, सलीम सिंह की हवेली और नाथमल की हवेली जैसे कई और ऐतिहासिक स्थल हैं जिन्हें एक ही दिन में देखा जा सकता है। साथ ही, स्थानीय बाजारों में राजस्थानी हस्तशिल्प, कपड़े और ज्वैलरी की खरीदारी का भी अलग मजा है।

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