कर्नाटक की कांग्रेस सरकार समाजवादी पार्टी के नेता रहे अमर सिंह के एक पुराने बयान को सच साबित करने पर तुली हुई है.
अमर सिंह ने इस मशहूर कहावत को देश की राजनीति में शामिल कर दिया था – “हम्माम में हर कोई नंगा है.”
जब भी भ्रष्टाचार से जुड़ा कोई विवाद होता था, वो पत्रकारों के सवालों को बड़ी चतुराई से टाल दिया करते थे. अमर सिंह की मौत के सालों बाद आज भी उनका यह बयान कर्नाटक की राजनीति में प्रासंगिक बना हुआ है.
लगभग हर रोज़ जब बीजेपी और जेडीएस यहां की कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाती है तो कांग्रेस नेता कोई न कोई पुराना या नया मामला इस विपक्षी गठबंधन के ख़िलाफ़ लेकर आ जाते हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएइसमें सबसे ताज़ा मामला केंद्रीय खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रह्लाद जोशी का है, जिनके भाई, भतीजे और ‘बहन’ पर यह आरोप लगा है कि उन्होंने इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी का टिकट दिलाने का वादा करके एक महिला से ठगी की है.
प्रह्लाद जोशी ने बीबीसी को बताया, “यह निश्चित रूप से कांग्रेस सरकार की ओर से बदले की भावना है. यह सिर्फ इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया मैसूर अर्बन डेवेलपमेन्ट ऑथोरिटी (एमयूडीए) घोटाले में फंस गए हैं, अब वो सभी पुराने आरोपों की बात कर रहे हैं.”
कर्नाटक के आईटी और बीटी मंत्री प्रियांक खड़गे ने बीबीसी हिंदी से कहा, “इसमें बदले की भावना कहां है? हमारी कैबिनेट उप-समिति केवल उन 20-25 मामलों पर नज़र रख रही है जो बीजेपी के शासन के दौरान दर्ज किए गए थे. जैसे गंगा कल्याण योजना, पुलिस सब इंस्पेक्टर नौकरी घोटाला, कोविड आदि.”
वहीं राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफ़ेसर संदीप शास्त्री को कर्नाटक के राजनीतिक इतिहास में पहली बार ‘बदले की राजनीति’ का भाव आने से बिल्कुल भी हैरानी नहीं है.
BBCबदले की इस राजनीति में नया मोड़ उस वक्त आया जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर आरोप लगा कि उनकी पत्नी को मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (एमयूडीए) के बाद 14 प्लॉट का आवटंन नियम विरुद्ध जाकर (उनकी बारी के बिना) दिया गया.
ये प्लॉट इसलिए दिए गए क्योंकि एमयूडीए ने अवैध रूप से 3.16 एकड़ जमीन पर लेआउट बनाया था, जिसे उनके भाई बीएम मल्लिकार्जुनस्वामी ने उन्हें गिफ्ट के रूप में दिया था.
इसके बाद महर्षि वाल्मीकि अनुसूचित जनजाति विकास निगम में वित्तीय घोटाला सामने आने के बाद मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े की मांग और तेज़ हो गई.
इस मामले में आरोप लगे कि तेलंगाना में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वहां की कई कंपनियों को 89 करोड़ रुपये बांटे गए थे.
इसके बाद कर्नाटक के अनुसूचित जनजाति मामलों के मंत्री बी नागेंद्र ने इस्तीफ़ा दे दिया था और बाद में उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ़्तार कर लिया था. कुछ दिन पहले ही वो ज़मानत पर रिहा हुए हैं.
दोनों कथित घोटालों के आरोप बीजेपी-जेडीएस गठबंधन के नेताओं ने लगाए. इसके जवाब में कांग्रेस सरकार ने जेडीएस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी से जुड़े खनन घोटाले का आरोप लगाया.
@PriyankKharge प्रियांक खड़गे ने इस बात से इनकार किया है कि कर्नाटक सरकार की कार्रवाइयां 'बदले की भावना' से प्रेरित हैंइस मामले की जांच पहले से ही लोकायुक्त पुलिस कर रही थी. कांग्रेस सरकार ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) रैंक के एक अधिकारी की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया.
इस मामले में कुमारस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने साल 2006 से 2008 तक मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान बेल्लारी में श्री साई वेंकटेश्वर मिनरल्स (एसएसवीएम) को अवैध रूप से 550 एकड़ का खनन पट्टा दिया था.
यह मुद्दा इसलिए सुर्खियों में आया क्योंकि राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने सिद्धारमैया के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज होने के दिन ही उनके ख़िलाफ़ कारण बताओ नोटिस जारी किया था. लेकिन जब एसआईटी ने कुमारस्वामी पर मुक़दमा चलाने की मंजूरी मांगी थी, तब उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की.
कुमारस्वामी के साथ तीख़ी बयानबाजी के बीच कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया.
उनपर आरोप है कि उन्होंने एक महिला की 17 साल की बेटी का यौन उत्पीड़न किया. यह महिला पुराने मामलों की शिकायत करने के लिए येदियुरप्पा के घर गई थी.
लड़की की मां ने येदियुरप्पा के ख़िलाफ़ 14 मार्च 2024 को शिकायत दर्ज कराई थी. 15 मार्च को यह मामला सीआईडी को सौंप दिया गया और 27 जून 2024 को मामले में चार्जशीट दायर की गई.
हैरानी की बात यह है कि चार्जशीट दायर करने में कोई अनावश्यक देरी नहीं हुई.
विपक्ष पर पलटवार करने की कांग्रेस की क्षमता उस समय सबसे अधिक दिखी जब विधान परिषद में विपक्ष के नेता और बीजेपी नेता चलवाडी नारायणस्वामी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के परिवार पर केआईएडीबी (कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड) के मुख्य एयरोस्पेस पार्क में पांच एकड़ जमीन आवंटित करने का आरोप लगाया.
सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट उस जमीन पर कौशल विकास केंद्र शुरू करना चाहता था.
प्रियांक खड़गे ने कहा, “ट्रस्ट को केवल आवंटन पत्र मिला था. लेकिन मेरे भाई (राहुल खड़गे, जो ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं) ने आवंटन वापस करने का फै़सला किया क्योंकि उन्हें ये आरोप द्वेषपूर्ण लगे.”
नारायणस्वामी के आरोप पर कांग्रेस ने तुरंत पलटवार करते हुए कहा कि बीजेपी नेता ने खुद ही कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड (केएचबी) में निदेशक रहते हुए खुद के लिए एक प्लॉट आवंटित करवाया था.
इसके बाद कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत से मांग की कि नारायणस्वामी को विधान परिषद के सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराया जाए.
नारायणस्वामी पर 21 जुलाई 2006 को सॉफ्टवेयर पैकेज डेवलपमेंट के निर्माण के लिए केआईएडीबी के तहत दो एकड़ जमीन के आवंटन में कथित अनियमितताओं के आरोप लगे.
कांग्रेस ने यह भी कहा, “पिछले कुछ दिनों में महामहिम (राज्यपाल गहलोत) ने जिस तेज़ी से काम किया है, उसे देखते हुए हम उम्मीद करते हैं कि नारायणस्वामी पर भी इसी तरह की कार्रवाई की जाएगी.”
इसी तरह का रुख़ तब भी अपनाया गया जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती ने एमयूडीए को 14 प्लॉट लौटा दिए. विपक्ष के नेता आर. अशोक ने सिद्धारमैया के इस्तीफे़ की मांग की थी.
इसके बाद कांग्रेस नेता एक पुराने मामले को सामने लेकर आए, जिसमें आर. अशोक ने बेंगलुरु विकास प्राधिकरण (बीडीए) की अधिग्रहित जमीन के एक टुकड़े को खरीदा था और जब लोकायुक्त में इस मामले की शिकायत दर्ज की गई तो बीजेपी नेता ने वह प्लॉट वापस कर दिया.
जब जस्टिस जॉन माइकल डी'कुन्हा जांच आयोग ने कोविड के दौरान कर्नाटक सरकार के खर्च पर अपनी अंतरिम रिपोर्ट पेश की, तो सरकार ने इस पर तेज़ी से काम किया. रिपोर्ट में कुल खर्च 7 हज़ार 223 करोड़ रुपये था और आयोग ने 500 करोड़ रुपये की वसूली की सिफारिश की. इसके बाद कैबिनेट ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का फै़सला किया.
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की नज़र में आने वाले सबसे नए व्यक्ति केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी हैं. उनपर आरोप लगे कि उनके भाई, भतीजे और विजयलक्ष्मी नाम की एक महिला, जिन्हें प्रहलाद जोशी की बहन बताया जाता है, इन तीनों ने इस साल हुए लोकसभा चुनाव में सुनीता चवन को बीजेपी का टिकट देने को कहा था.
सुनीता चवन जेडीएस के एक पूर्व विधायक की पत्नी हैं.
आरोप है कि गोपाल जोशी ने इसके बदले नकद के रूप में पहले 25 लाख रुपये फिर 1.75 करोड़ रुपये और फिर 50 लाख रुपये लिए. इसके अलावा पांच करोड़ रुपये का चेक भी लिया था. यह रकम वापस नहीं की गई.
इन आरोपों पर प्रह्लाद जोशी ने कहा, “मेरे ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप में एक महिला का ज़िक्र है, जो मेरी बहन नहीं है. उन्होंने अब एक बहन भी बना ली है. जहां तक मेरे भाई गोपाल का सवाल है, मेरा उससे कोई संबंध नहीं है. करीब 32 साल पहले जब वह कुछ वित्तीय अनियमितताओं में शामिल था, तो मैंने एक समझौता किया और कोर्ट ने आदेश दिया कि मेरा उससे कोई संबंध नहीं है.”
वहीं सुनीता चवन ने शनिवार को मीडिया से कहा कि इस मामले में प्रह्लाद जोशी की कोई भूमिका नहीं है.
उन्होंने कहा, "मैं मीडिया से अपील करती हूं कि उनका नाम इस मामले में न लाया जाए. शिकायत केवल गोपाल जोशी के ख़िलाफ़ की गई है."
कर्नाटक की राजनीति कभी भी उस तरह के बदले के इर्द-गिर्द नहीं घूमती, जैसा कि तमिलनाडु में ख़ासकर मुथुवेल करुणानिधि की अगुवाई वाली डीएमके और जे जयललिता की अगुवाई वाली एआईएडीएमके के शासन के दौरान देखा गया.
प्रोफ़ेसर शास्त्री बताते हैं कि 1985 से 2023 तक कर्नाटक ने ‘बदलती हुई’ सरकारें देखी हैं. सत्ता में आने वाली हर पार्टी अगले चुनाव में सत्ता में नहीं लौटी.
वो कहते हैं, “सभी पार्टियां अपनी अंदरूनी समस्याओं के कारण हमेशा मुश्किल में फंसीं. इसका विपक्ष के मज़बूत होने से कोई लेना-देना नहीं था.”
“2018 की बीजेपी सरकार में हुए भ्रष्टाचार की वजह से 2023 के चुनाव में निगेटिव वोटिंग हुई, जिसके दम पर कांग्रेस सत्ता में आई. इसलिए बीजेपी अब कांग्रेस से बदला लेना चाहती है. और कांग्रेस बदले की राजनीति को फिर से शुरू करना चाहती है.”
प्रोफ़ेसर शास्त्री कहते हैं, “बदले की राजनीति के साथ इस तथ्य का मिश्रण है कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी है और राज्य में वह विपक्ष है.”
“आप देखेंगे कि जब बीजेपी विपक्ष में होती है तो वह बहुत आक्रामक होती है और सत्ताधारी पार्टी होने के विपरीत, वह बहुत अधिक राजनीतिक शोर भी मचाती है. कर्नाटक में यही हो रहा है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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