दांतों के इलाज के लिहाज से वैज्ञानिकों ने एक बड़ा दावा किया है. उन्होंने एक नया जेल बनाया है, जो दांतों की इनैमल परत की मरम्मत करने और उसे फिर से बनाने में मदद कर सकता है.
इस दवा (जेल) को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे दांतों के इलाज में एक नई संभावना पैदा हो सकती है.
दरअसल, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम के स्कूल ऑफ फार्मेसी और केमिकल एंड एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग विभाग के विशेषज्ञ दुनिया भर के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर इनैमल को मजबूत बनाने और दांतों को सड़ने से रोकने के उपाय पर काम कर रहे हैं.
यूनिवर्सिटी के मुताबिक़, प्रोटीन-आधारित यह पदार्थ (जेल) "उन ख़ास प्रक्रियाओं की नकल करता है", जिन प्रक्रियाओं से शिशुओं में इनैमल का निर्माण होता है.
यह लार में मौजूद कैल्शियम और फॉस्फेट आयनों के लिए "एक सतह" (स्कैफ़ोल्ड) का काम करता है.
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इस शोध के विस्तृत नतीजे विज्ञान से जुड़ी नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक़, दुनियाभर में क़रीब 3.7 अरब लोग मुंह से जुड़ी (ऑरल) बीमारियों से पीड़ित हैं, जिनमें इनैमल का कमज़ोर होना एक प्रमुख बीमारी है.
दांतों की परत का पतला होना (जिसे टुथ इरोजन कहते हैं) एक आम बीमारी है. खाने-पीने की चीज़ों में मौजूद एसिड दांत की सबसे बाहरी परत यानी इनैमल पर हमला करते हैं और धीरे-धीरे उसे पतला कर देते हैं.
इनैमल दांत की मुलायम अंदरूनी परतों की हिफाजत करता है. अब तक मौजूद इलाज से, एक बार इनैमल पतला हो जाए या ख़त्म हो जाए, तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता.
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University of Nottingham इनैमल के घिस जाने के बाद की इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपिक इमेज (बाएं) और दो हफ़्ते के इलाज के बाद की तस्वीर (दाएं) इनैमल के ख़राब होने से संक्रमण, दांतों की सेंसिटिविटी बढ़ना और दांत गिरने जैसी समस्याएं हो सकती हैं, जो आगे चलकर डायबिटीज़ और हृदय रोग जैसी बीमारियों से जुड़कर और गंभीर रूप ले सकती हैं.
मौजूदा समय में उपलब्ध इलाज, मसलन फ्लोराइड वार्निश, केवल लक्षणों को कम कर सकते हैं क्योंकि इनैमल कुदरती तौर पर दोबारा नहीं बनता.
इस शोध का नेतृत्व प्रोफेसर आल्वारो मैटा कर रहे हैं, जो बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और बायोमैटेरियल्स के प्रमुख हैं. उनका कहना है कि यह नया पदार्थ यानी जेल "आसानी से और जल्दी से दांतों पर लगाया जा सकता है."
उन्होंने कहा, "हम इस जेल को लेकर बहुत उत्साहित हैं क्योंकि यह तकनीक डॉक्टरों और मरीजों, दोनों को ध्यान में रखकर बनाई गई है."
"हमें उम्मीद है कि अगले साल तक पहला प्रोडक्ट बाज़ार में आ जाएगा और यह जल्द ही दुनिया भर के मरीजों की मदद कर सकेगा."
प्रोफेसर पॉल हैटन, शेफ़ील्ड की स्कूल ऑफ क्लिनिकल डेंटिस्ट्री के बायोमैटेरियल्स साइंस के प्रोफेसर और ब्रिटिश डेंटल एसोसिएशन की हेल्थ एंड साइंस कमेटी के सदस्य हैं.
उन्होंने कहा, "दांतों की मरम्मत के लिए प्राकृतिक इनैमल को दोबारा बनाना, दांत से जुड़े वैज्ञानिकों के लिए कई सालों से एक तरह का 'होली ग्रेल' रहा है, और यह शोध उस दिशा में एक बेहतरीन कामयाबी का संकेत देता है."
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