यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ वॉशिंगटन में बैठक करने वाले हैं.
जर्मनी, फ़्रांस, ब्रिटेन और यूरोपीय आयोग के नेता भी व्हाइट हाउस में होने वाली इस बैठक में शामिल होंगे.
इससे पहले 15 अगस्त को ट्रंप ने अलास्का में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक की थी, जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था.
अब, ज़ेलेंस्की के साथ बैठक से पहले ट्रंप ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है, जिससे रूस-यूक्रेन के बीच समझौते को लेकर उनका रुख़ स्पष्ट नज़र आ रहा है.
ट्रंप ने क्या कहा है? रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध ख़त्म होने को लेकर कैसे हालात नज़र आ रहे हैं और शांति की कोशिशों में कौन सी बड़ी बाधाएँ अब भी मौजूद हैं?
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"रूस पर बड़ी प्रगति" की बात पोस्ट करने वाले ट्रंप ने अब गेंद यूक्रेन के पाले में डाल दी है.
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति 'अगर चाहें' तो रूस के साथ युद्ध को ख़त्म कर सकते हैं, लेकिन शांति समझौते के हिस्से के तौर पर 'यूक्रेन का नेटो में शामिल होना संभव नहीं है.'
ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'ट्रुथ सोशल' पर लिखा, "यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की अगर चाहें तो रूस के साथ युद्ध को तुरंत ख़त्म कर सकते हैं, या फिर वह लड़ाई जारी रख सकते हैं."
उन्होंने आगे लिखा, "याद कीजिए इसकी शुरुआत कैसे हुई थी. ओबामा का दिया गया क्राइमिया वापस नहीं मिलेगा (12 साल पहले, बिना एक भी गोली चलाए!), और यूक्रेन नेटो में शामिल नहीं होगा. कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं."
रूस ने 2014 में क्राइमिया पर कब्ज़ा कर लिया था.
बैठक से पहले अमेरिका का रुख़
वहीं ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ ने सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कहा है कि पुतिन ने अमेरिका को यूक्रेन के लिए 'मज़बूत सुरक्षा गारंटी देने पर सहमति जाहिर की है.'
विटकॉफ़ ने रूस-यूक्रेन के बीच अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर चर्चा की, ख़ासकर उन पाँच क्षेत्रों का ज़िक्र किया, जिन्हें उन्होंने हमेशा से 'समझौते का मूल' बताया है.
ये पाँच क्षेत्र क्राइमिया, लुहान्स्क, दोनेत्स्क, ज़ापोरिज़िया और खेरसॉन हैं. लुहान्स्क, दोनेत्स्क, ज़ापोरिज़िया और खेरसॉन क्षेत्रों को रूस ने 2022 में जनमत संग्रह के बाद अपने क्षेत्र में मिला लिया था.
हालाँकि, उस जनमत संग्रह को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखावा माना जाता है.
विटकॉफ़ ने रविवार को कहा, "रूस ने इन सभी पाँच क्षेत्रों को लेकर कुछ रियायतों पर बात की है."
उन्होंने कहा कि दोनेत्स्क क्षेत्र बातचीत का एक 'अहम' विषय है और सोमवार को इस पर भी बात होगी.
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वॉशिंगटन में होने जा रही ट्रंप-ज़ेलेंस्की की बैठक में पुतिन हिस्सा नहीं ले रहे हैं, लेकिन वह पहले से ही मज़बूत स्थिति में नज़र आ रहे हैं.
बीबीसी के रूस संपादक स्टीव रोज़नबर्ग लिखते हैं कि रूसी राष्ट्रपति को दुनिया के सबसे ताक़तवर देश के नेता के साथ एक मंच पर आने का मौक़ा मिला. इसके साथ ही, अब तक उन्हें युद्ध को लेकर कोई बड़ा समझौता या कोई बड़ी रियायत नहीं देनी पड़ी है.
पिछले हफ़्ते अलास्का में हुई बैठक से ट्रंप को वह नहीं मिला, जिसकी उन्हें उम्मीद थी यानी रूस की तरफ़ से युद्ध विराम.
लेकिन पुतिन को काफ़ी कुछ मिला, अलास्का में बेहद गर्मजोशी से स्वागत और दुनिया के सबसे ताक़तवर नेता के साथ मंच साझा करने का मौक़ा.
इस तरह, रूस को बिना किसी ख़ास समझौते के या बिना कोई रियायत दिए कई फ़ायदे मिले.
इससे पहले ट्रंप धमकी देते रहे हैं कि अगर रूस यूक्रेन में युद्ध विराम के लिए तैयार नहीं होता है, तो वे सख़्त रुख़ अपना सकते हैं. लेकिन अब तक व्हाइट हाउस ने इस धमकी पर अमल नहीं किया है.
जुलाई के अंत में ट्रंप ने पुतिन को अल्टीमेटम दिया था कि यूक्रेन में 10 दिन के अंदर युद्ध ख़त्म किया जाए, नहीं तो रूस को कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा.
फ़िर भी रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने युद्ध नहीं रोका और प्रतिबंधों की जगह उन्हें दुनिया के सबसे ताक़तवर नेता से शिखर वार्ता का निमंत्रण मिल गया.
ट्रंप को क्या हासिल हुआ?अलास्का से बीबीसी संवाददाता टॉम बेटमैन लिखते हैं कि ट्रंप को 'दिखाने लायक़ कोई ठोस उपलब्धि नहीं मिली' और यह 'पुतिन की साफ़ जीत' है.
ट्रंप चाहते थे कि पुतिन के साथ अलास्का में हुई शिखर बैठक में युद्ध विराम समझौते पर बात बन जाए. ये मांग वह मार्च से करते आ रहे हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
ट्रंप ने कहा कि इस मामले में बात कुछ आगे बढ़ी है, लेकिन इसे लेकर ख़ास जानकारी नहीं दी.
अब ट्रंप की प्राथमिकता युद्ध विराम से ज़्यादा शांति समझौता नज़र आ रही है. यहाँ भी पुतिन मज़बूत स्थिति में नज़र आते है.
बीबीसी मॉनिटरिंग के रूस संपादक विताली शेवचेंको कहते हैं, "पश्चिमी देशों की सालों की कोशिश के बावजूद, जिसमें अलास्का शिखर बैठक भी शामिल है, पुतिन की स्थिति में ज़रा भी बदलाव नहीं आया है."
पुतिन ने अलास्का की बैठक से पहले, बैठक के दौरान और बैठक के बाद, यही कहा कि यूक्रेन संघर्ष के मूल कारणों' को दूर किया जाए.
इससे उनका मतलब, वे वजहें हैं, जिनके चलते उन्होंने यूक्रेन के ख़िलाफ़ तथाकथित 'विशेष सैन्य अभियान' शुरू किया था.
अब स्थिति यह है कि ट्रंप भी इस बात से सहमत दिख रहे हैं कि युद्ध विराम काफ़ी नहीं है और स्थायी शांति से ही समाधान होगा, जो पुतिन के मुताबिक़ सिर्फ़ उन 'मूल कारणों' को दूर करके ही पाई जा सकती है.
इससे, एक बार फ़िर ट्रंप पुतिन के पक्ष में दिखते हैं.
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भले ही, ट्रंप-ज़ेलेंस्की की बैठक में यूक्रेन के सबसे क़रीबी यूरोपीय सहयोगी भी शामिल होंगे, लेकिन बीते शुक्रवार को अलास्का में हुई घटनाओं ने उन्हें मुख्य बातचीत से और दूर कर दिया है.
वे हमेशा से युद्ध विराम की वकालत करते रहे हैं, जबकि अब ट्रंप की प्राथमिकता उससे अलग है.
बीबीसी के यूक्रेन संवाददाता जेम्स वाटरहाउस का कहना है कि शिखर बैठक से पहले यूरोपीय देशों ने ट्रंप पर दबाव बनाया था.
वाटरहाउस के मुताबिक़ शुरुआती युद्ध विराम को नज़रअंदाज़ करने की ट्रंप की घोषणा 'यूरोपीय संघ और यूक्रेन दोनों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि युद्ध विराम उनकी मुख्य मांगों में से एक थी.'
बीबीसी के टॉम बेटमैन कहते हैं कि पुतिन को इस बैठक में यूरोपीय देशों को चेतावनी देने का बड़ा मंच मिला कि वे उनके ट्रंप से रिश्तों में 'खलल' न डालें.
यह दरअसल ट्रंप प्रशासन और अमेरिका के यूरोपीय सहयोगियों के बीच दरार को और गहरा करने की उनकी कोशिश थी, जिसे वह ट्रंप के कार्यकाल में बार-बार इस्तेमाल करते रहे हैं.
लेकिन वह इससे भी आगे बढ़ गए. एक बयान में उन्होंने ट्रंप के इस दावे को दोहराया कि अगर (रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के दौरान जो बाइडन की जगह) ट्रंप राष्ट्रपति होते, तो यह युद्ध कभी शुरू ही नहीं होता.
पुतिन को पता है कि यह बयान सीधे ट्रंप के उस दावे को मज़बूत करता है कि 2020 का चुनाव वे 'धांधली के कारण हार गए थे' और ट्रंप के ज़्यादातर समर्थक अभी भी इस पर विश्वास करते हैं.
इस तरह पुतिन ने अमेरिकी ज़मीन पर ट्रंप की ओर से दिए गए मंच का इस्तेमाल कर अमेरिका और यूरोप के बीच की दरारों को गहरा करने और अमेरिका में विभाजन को और उभारने की कोशिश की.
ज़ेलेंस्की को क्या मिला?ज़ेलेंस्की की प्राथमिकता यूक्रेन के लिए किसी तरह की सुरक्षा गारंटी हासिल करना है.
लेकिन अलास्का में शुक्रवार को बिना उनकी मौजूदगी के हुई शिखर बैठक से अगर वे निराश हुए हैं, तो इस बात को समझा जा सकता है.
बीबीसी के कूटनीतिक संवाददाता पॉल एडम्स कहते हैं, "फ़िलहाल यूक्रेन की नेटो सदस्यता की संभावना दूर की बात है, ऐसे में सुरक्षा आश्वासनों की मज़बूत व्यवस्था युद्ध विराम की किसी भी कूटनीतिक कोशिश का केंद्र है."
इसके पीछे तर्क ये है कि बिना सुरक्षा गारंटी के रूस को भविष्य में फिर हमला करने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं होगा.
यूक्रेन के यूरोपीय सहयोगी, जिनका नेतृत्व ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर और फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों कर रहे हैं.
ये नेता इस साल के शुरू से ही 'इच्छुक देशों के गठबंधन की' चर्चा कर रहे हैं.
स्टार्मर कह चुके हैं कि 'पक्की योजनाएँ' बनाई जा चुकी हैं ताकि युद्ध विराम की स्थिति में यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी देने के लिए "सैन्य तैनाती" की जा सके.
ब्रिटेन के मुताबिक़ इससे 'यूक्रेन को हवाई और समुद्री सुरक्षा मिलेगी और उसकी सशस्त्र सेनाओं के सुधार में मदद मिलेगी.'
पॉल एडम्स कहते हैं, "लेकिन यह सैन्य तैनाती किन देशों और किनके संसाधनों से होगी, यह अब भी स्पष्ट नहीं है."
और अब जबकि ट्रंप युद्ध रोकने के लिए युद्ध विराम छोड़कर 'स्थायी शांति समझौते' की नई दिशा में बढ़ रहे हैं, ज़ेलेंस्की की स्थिति एक हफ़्ते पहले की तुलना में और कमज़ोर लग रही है.
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