महावीर जयंती इस साल 10 अप्रैल को है. महावीर जयंती जैन समुदाय का विशेष पर्व होता है.
जैन समुदाय के लोग महावीर स्वामी का जन्म उत्सव के रूप में मनाते हैं.
महावीर स्वामी को जैन धर्म का 24वाँ और अंतिम तीर्थंकर माना जाता है.
उनका जन्म ईसा पूर्व 599 वर्ष माना जाता है.
उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं और बचपन में उनका नाम वर्द्धमान था.
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जैन धर्म 24 तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षा पर आधारित है. तीर्थंकर यानी वो आत्माएं जो मानवीय पीड़ा और हिंसा से भरे इस सांसारिक जीवन को पार कर आध्यात्मिक मुक्ति के क्षेत्र में पहुंच गई हैं.
सभी जैनियों के लिए 24वें तीर्थंकर महावीर जैन का ख़ास महत्व है.
महावीर इन आध्यात्मिक तपस्वियों में से अंतिम तीर्थंकर थे. लेकिन, जहां औरों की ऐतिहासिकता अनिश्चित है वहीं, महावीर जैन के बारे में पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने इस धरती पर जन्म लिया.
महावीर स्वामी गौतम बुद्ध के समकालीन थे.
क्या गौतम बुद्ध और महावीर एक जैसा सोचते थे?
गौतम बुद्ध और महावीर दोनों ही ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित उस युग के वैदिक विश्वासों के आधिपत्य के ख़िलाफ़ उठे आंदोलनों के सबसे करिश्माई प्रवक्ता थे.
महावीर के अनुयायियों ने पुनर्जन्म के सिद्धांत जैसे कुछ वैदिक विश्वासों को तो अपनाया लेकिन गौतम बुद्ध की तरह जाति बंधनों, देवताओं की सर्वोच्चता में विश्वास और पशु बलि की प्रथाओं से किनारा कर लिया.
महावीर के अनुयायियों के लिए मुक्ति का मार्ग त्याग और बलिदान ही है लेकिन इसमें जीवात्माओं की बलि शामिल नहीं है.
महावीर के क्या उपदेश थे?कुछ बौद्ध ग्रंथों में महावीर का उल्लेख है लेकिन आज हम उनके बारे में जो कुछ भी जानते हैं उसका आधार दो जैन ग्रंथ हैं. प्रचारात्मक कल्पसूत्र- ये ग्रंथ महावीर के सदियों बाद लिखा गया.
इससे पहले लिखे गए आचारांग सूत्र हैं. इस ग्रंथ में महावीर को भ्रमरणरत, नग्न, एकाकी साधु के रूप में दिखाया गया है.
कहा जाता है कि महावीर ने 30 साल उम्र में भ्रमण करना शुरू किया और वो 42 साल की उम्र तक भ्रमण करते रहे.
गौतम बुद्ध की तरह महावीर ने किसी मध्यम मार्ग का उपदेश नहीं दिया. महावीर ने अपने अनुयायियों को असत्य और मैथुन त्यागने, लालच और सांसरिक वस्तुओं का मोह छोड़ने, हर प्रकार की हत्याएं और हिंसा बंद करने का संदेश दिया.
ज्ञान की खोज में गृह त्याग कर महावीर ने अपनी यात्रा की शुरुआत भी एक भयानक पीड़ाजनक कृत्य से की थी.
कल्पसूत्र में अशोक वृक्ष के नीचे घटित उस क्षण का वर्णन है. वहां उन्होंने अपने अलंकार, मालाएं और सुंदर वस्तुओं को त्याग दिया.
आकाश में चंद्रमा और ग्रह नक्षत्रों के शुभ संयोजन की बेला में उन्होंने ढाई दिन के निर्जल उपवास के बाद दिव्य वस्त्र धारण किए. वो उस समय बिल्कुल अकेले थे.
अपने केश लुंचित कर (तोड़कर) और अपना घरबार छोड़कर वो संन्यासी हो गए.
बौद्ध जहां अपना सिर मुंडवाते हैं वहीं, जैन शिष्य खुद अपने मुट्ठियों से बाल का लुंचन करते हैं.
महावीर और जैन परंपरा की शिक्षाएं 20वीं सदी के भारत में तब राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो गईं थीं जब महात्मा गांधी ने इतिहास के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य ब्रिटिश राज को हटाने के लिए अहिंसा का प्रयोग किया.
गांधी जी ने जैन धर्म की सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान की भावना का बेहद आदर करते थे.
अहिंसा का उनका दर्शन लियो टॉलस्टाय सहित कई स्रोतों से प्रभावित था. लेकिन महावीर उन्हें अहिंसा के सिपाही लगते थे.

महावीर के पवित्र उपदेश संपूर्ण भारत में फैले. विशेषकर पश्चिमी भारत के गुजरात, राजस्थान में और दक्षिण भारत में कई लोगों ने जैन धर्म अपनाया.
कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में आपको सबसे प्रसिद्ध जैनतीर्थ मिलेगा. एक विशालकाय प्रतिमा, जो एक पर्वत की चोटी को काटकर गढ़ी गई है, बाहुबली चोटी. जैन परंपरा के अनुसार बाहुबली या गोम्मट पहले तीर्थंकर के पुत्र थे.
17 मीटर ऊंची और आठ मीटर चौड़ी ये प्रतिमा एक चट्टान से बनी विश्व की सबसे विशाल मानव निर्मित प्रतिमा है.
जैन प्रतिमाओं का सहज रूप तप की अंतिम अवस्था को दर्शाता है. कठोर जैन निरामिष (मांसरहित) भोजन में ना केवल मांस और अंडों का सेवन निषेध है बल्कि कंदमूल भी वर्जित है. शायद इसलिए कि उन्हें उखाड़ने से ज़मीन के अंदर, आसपास के पौधों और छोटे जीव-जंतुओं को कष्ट पहुंच सकता है.
महिलाओं के बारे में विचारजैन समुदाय में इस बात पर मतभेद है कि महिलाएं ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर चल सकती हैं या नहीं.
एक जैन ग्रंथ के अनुसार, महावीर स्त्रियों को दुनिया का सबसे बड़ा प्रलोभन मानते हैं और कठोरतम जैन परम्पराओं के अनुसार, स्त्रियां संन्यासी नहीं हो सकती हैं, क्योंकि उनके शरीर में अंडाणुओं का निर्माण होता है, जोकि मासिक धर्म के स्राव के दौरान मारे जाते हैं.
महावीर के समय में ही इन कठोर जैन आचारों का पालन कठिन था और आधुनिक भारत में तो ये और भी कठिन है. असल में कठिन मार्ग के कारण ही ये धर्म भारत से बाहर उस तरह से नहीं फ़ैल पाया जैसे कि बौद्ध धर्म.
जैन समुदाय आज अपनी व्यवहारिक कुशलता और व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाना जाता है और आज वो देश के सबसे धनी अल्पसंख्यक समुदाय में से एक हैं.
(लंदन में किंग्स कॉलेज के प्रोफ़ेसर सुनील खिलनानी के फैला उजियारा में प्रकाशित 'महावीर स्वामी: अहिंसा के सिपाही' कड़ी पर आधारित.)
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