दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए एटम बम हमले में बचे जापान के लोगों के संगठन निहोन हिंदानक्यो को साल 2024 का शांति नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा हुई है.
नॉर्वे नोबेल समिति के अध्यक्ष जॉर्गन वात्ने फ्रिदनेस ने शुक्रवार को पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा, "दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम से बचे लोगों का ये ज़मीनी प्रयास सराहनीय है."
उन्होंने कहा, "समूह ने अपने अभियान के ज़रिये परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया हासिल करने का प्रयास किया है. उनका मकसद है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल दोबारा कभी नहीं किया जाना चाहिए. इसके लिए निहोन हिंदानक्यो समूह को शांति पुरस्कार दिया जा रहा है."
इसी संगठन से जुड़ी हैं सेतसुको थुर्लो. इस साल की शुरुआत में उन्होंने बीबीसी से बात की थी और उस दिन की दास्तां सुनाई थी जब अमेरिकी फाइटर ने परमाणु बम गिराए थे.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ करें.निहोन हिंदानक्यो का गठन 1956 में हुआ था और इसका मकसद था परमाणु हथियारों से मानव जाति को होने वाले नुकसान की आंखों देखी सुनाकर दुनिया को ख़तरे से आगाह करना.
इस संगठन की शुरुआत बम गिराए जाने की घटना के लगभग एक दशक बाद हुई थी.
6 अगस्त 1945 को अमेरिकी लड़ाकू विमान ने हिरोशिमा शहर के ऊपर यूरेनियम बम गिराया था. इसमें एक लाख 40 हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे.
तीन दिन बाद अमेरिका ने दूसरे शहर नागासाकी को निशाना बनाया और यहां एटम बम गिराया. इसके दो हफ़्ते बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया और इस तरह दूसरे विश्व युद्ध का भी खात्मा हो गया.
इस समूह के सह प्रमुख तोशियुकी मिमाकी ने संवाददाताओं से कहा, “मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा (नोबेल शांति पुरस्कार) होगा.”
हिरोशिमा का विनाश देखा BBC निहोन हिंदानक्यो समूह के सह प्रमुख तोशियुकी मिमाकीसेतसुको थर्लो हिरोशिमा के परमाणु हमले में बचने वाले खुशकिस्मतों में से एक थीं. तब वह 13 साल की थीं. इसके बाद से वो लगातार दुनियाभर में लोगों को परमाणु हथियारों के ख़तरे से आगाह करने के लिए अभियान चला रही हैं.
बम गिरते वक्त क्या हुआ था, सेतसुको ने बीबीसी को बताया, “मैंने तेज़ रोशनी देखी. मुझे ये सोचने का भी वक्त नहीं मिला कि ये क्या है क्योंकि मेरा शरीर हवा में उछल गया था और फिर मैं बेहोश हो गई.”
6 अगस्त 1945 की सुबह घड़ी में 8 बजकर 16 मिनट का समय हुआ था, अमेरिका ने ‘लिटिल बॉय’ नाम का एटम बम हिरोशिमा के ऊपर गिरा दिया. पहली बार किसी भी युद्ध में परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ था.
सेतसुको बताती हैं, “जब मुझे होश आया, तो मैंने खुद को अंधेरे से घिरा पाया, कोई शोर नहीं था.”
“मैंने अपने शरीर को हिलाने की कोशिश की, लेकिन नहीं हिला सकी. अचानक एक हाथ मेरी पीठ पर महसूस हुआ और एक मर्दाना आवाज़ कह रही थी- हिम्मत मर हारना. कोशिश करती रहो. आगे बढ़ती रहो.”
सेतसुको उस शख्स को तो नहीं देख सकीं, लेकिन अंधेरे से निकलने के उनके निर्देशों को सुनती रहीं. वो अपने स्कूली दोस्तों की चीखें सुन सकती थी. वो चिल्ला रही थीं, “भगवान बचा लो, मम्मी बचा लो.”
इमारत जलना शुरू हो गई थी. वो लोग जो वहाँ फंस गए थे- वो ज़िंदा जल गए.
वो भूत की तरह दिख रहे थे
उस कमरे में मौजूद 30 लड़कियां जापानी सेना के लिए काम कर रही थीं. उन्हें जापानी सेना में कोड ब्रेकर के लिए रखा गया था, क्योंकि वो गणित में अच्छी थीं.
सिर्फ़ सेतसुको और दो अन्य लड़कियां ही इस हमले में बच सकीं.
सेतसुको बताती हैं, “मैं देख सकती थी कि जो शरीर कुछ ही देर पहले मनुष्य थे, वो अब किसी भी तरह से मनुष्य नहीं लग रहे थे. वो मुझे भूत नज़र आ रहे थे, क्योंकि उनके बाल खड़े हो गए थे. उनकी मांस और त्वचा पिघलकर हड्डियों से झूल रही थी और शरीर के कुछ हिस्से ग़ायब थे.”
युद्ध खत्म होने के बाद सेतसुको को 1954 में अमेरिका कि वर्जीनिया में सोशियोलॉज़ी में पढ़ाई करने का प्रस्ताव मिला. लेकिन एक अख़बार में छपे इंटरव्यू से मामला उलझ गया.
दरअसल, 1952 में अमेरिका ने दुनिया के पहले हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था जिसकी ताकत हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से 1000 गुना अधिक थी.
वर्जीनिया का एक अख़बार चाहता था कि वो किसी ऐसे शख्स का इंटरव्यू करे जिसने परमाणु हमले को पहले अनुभव किया हो और हथियारों की रेस पर वो क्या सोचता है. अख़बार ने इसके लिए सेतसुको से संपर्क कर उनका इंटरव्यू किया.
ये लेख अख़बार में सेतसुको के हवाले से छपा था. ‘अब बहुत हुआ. हिरोशिमा और नागासाकी फिर कभी नहीं होने चाहिए.’ उन्होंने अमेरिकी परमाणु नीति की आलोचना की थी. बदले में उन्हें अमेरिकी से धमकियां मिली और नफरत भरी चिट्ठियां भी.
लेकिन सेतसुको ने हिम्मत नहीं हारी और उसके बाद से ही दुनियाभर में परमाणु हथियारों के खतरे को लेकर अभियान चलाती रहीं.
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