
चीन ने एक ऐसे बांध के निर्माण की शुरुआत कर दी है, जिसे लेकर भारत और बांग्लादेश में चिंता जताई जा रही है.
चीनी अधिकारियों ने तिब्बती क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े हाइड्रोपावर बांध के निर्माण की आधारशिला रखी है.
स्थानीय मीडिया के मुताबिक, शनिवार को चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने यारलुंग सांगपो नदी पर इस परियोजना की शुरुआत के अवसर पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता की.
यह नदी तिब्बती पठार से निकलकर भारत और बांग्लादेश तक बहती है. इस परियोजना की आलोचना इसलिए हो रही है क्योंकि इसकी वजह से नीचे की ओर बहाव वाले इलाक़े (डाउनस्ट्रीम) में भारत और बांग्लादेश के करोड़ों लोगों, स्थानीय तिब्बती आबादी और पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ सकता है.
वहींचीन का कहना है कियह परियोजना पारिस्थितिक संतुलन को प्राथमिकता देगी और स्थानीय समृद्धि को बढ़ावा देगी.
आइए जानते हैं इस परियोजना और इससे जुड़ी चिंताओं के बारे में पांच बड़ी बातें:
चीन के मुताबिक़, मोटुओ हाइड्रोपावर स्टेशन नाम की इस परियोजना की लागत क़रीब 1.2 ट्रिलियन युआन यानी लगभग 167 अरब डॉलर (लगभग 1.44 लाख करोड़ रुपये) है.
इसके पूरा होने पर यह बांध चीन के थ्री गॉर्जेस डैम को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बन जाएगा. इसकी ऊर्जा उत्पादन क्षमता मौजूदा थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना अधिक मानी जा रही है.
इस परियोजना का ज़िक्र पहली बार चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान हुआ था. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2021 में अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान एक मेगा बांध बनाने की घोषणा की थी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस परियोजना में पांच कासकेड हाइड्रोपावर स्टेशन बनाए जाएंगे. कासकेड का मतलब होता है, जब किसी ऊंचाई से पानी को एक के बाद एक कई स्तरों पर गिराया जाता है, ताकि लगातार बिजली बनाई जा सके.
इस परियोजना के ज़रिए स्थानीय लोगों की बिजली की ज़रूरतें पूरी करने के साथ-साथ बड़े स्तर पर व्यावसायिक बिजली उत्पादन भी किया जाएगा. चीन का इरादा इस परियोजना से कोयले पर अपनी निर्भरता कम करने और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने का है.
चीन का लक्ष्य है कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाए.
प्रधानमंत्री ली कियांग ने इस परियोजना को 'सदी की सबसे बड़ी परियोजना' करार दिया है.
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विशेषज्ञों और अधिकारियों ने आशंका जताई है कि यह नया बांध चीन को यारलुंग सांगपो जैसी अंतरराष्ट्रीय नदी के प्रवाह को नियंत्रित या मोड़ने की शक्ति दे सकता है. यह नदी तिब्बत से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम से होकर बहती है और बांग्लादेश में जमुना के रूप में मिलती है. भारत में इसे सियांग और ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है.
ऑस्ट्रेलिया स्थित थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट की 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया था,"तिब्बती पठार में बहने वाली इन नदियों पर नियंत्रण चीन को भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालने की एक बड़ी ताक़त देता है."
जनवरी 2025 में भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि भारत ने चीन के साथ मेगा बांधों के असर को लेकर अपनी चिंता जताई है. चीन से आग्रह किया गया था कि "नदी के निचले हिस्सों (डाउनस्ट्रीम देशों) के हितों को नुकसान न पहुंचे और ऐसे मामलों में पारदर्शिता और परामर्श सुनिश्चित किया जाए."
भारत भी अब सियांग नदी पर एक हाइड्रोपावर बांध बनाने की योजना पर काम कर रहा है, ताकि चीन के बांध से अचानक छोड़े गए पानी से बचाव हो सके और बाढ़ के जोखिम को कम किया जा सके.
वहीं चीन के विदेश मंत्रालय ने 2020 में भारत की आपत्तियों का जवाब देते हुए कहा था कि "चीन को इस नदी पर बांध बनाने का वैध अधिकार है और उसने डाउनस्ट्रीम देशों पर पड़ने वाले असर को ध्यान में रखा है."
भारत के साथ-साथ बांग्लादेश ने भी इस परियोजना पर चिंता जताई है. फरवरी में बांग्लादेशी अधिकारियों ने चीन को चिट्ठी लिखकर इस बांध से जुड़ी विस्तृत जानकारी मांगी थी.

यह बांध अरुणाचल प्रदेश की सीमा के बेहद क़रीब स्थित न्यिंगची इलाके में बनाया जा रहा है, इसलिए भारत में कई नेताओं ने इसे लेकर खुलकर चिंता जताई है.
इसी महीने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस परियोजना को "वॉटर बम" कहा था. उनका कहना था कि बांध बन जाने के बाद सियांग और ब्रह्मपुत्र नदियों का प्रवाह "काफ़ी हद तक सूख सकता है." उन्होंने यह भी कहा, "यह बांध हमारी जनजातियों और आजीविका के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर सकता है. मामला बेहद गंभीर है, क्योंकि चीन इसे 'वॉटर बम' की तरह भी इस्तेमाल कर सकता है."
पेमा खांडू ने यह चेतावनी भी दी, "मान लीजिए कि बांध बनता है और अचानक पानी छोड़ा जाता है, तो सियांग क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो जाएगा. ख़ासतौर पर आदि जनजाति और ऐसे दूसरे समुदायों की ज़मीन, संपत्ति और सबसे बढ़कर इंसानी जान, सब पर विनाशकारी असर पड़ेगा."
कांग्रेस पार्टी ने भी एक्स पर पोस्ट कर यह कहा कि न्यिंगची में बन रहा यह बांध भारत के लिए ख़तरा बन सकता है. पार्टी ने आशंका जताई कि चीन इसके ज़रिए ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव पर पूरी तरह नियंत्रण स्थापित कर सकता है.
वहीं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस मुद्दे पर कहा है कि इस बांध से इतना ज़्यादा घबराने की ज़रूरत नहीं है.
उनके मुताबिक, ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव का केवल 30–35 प्रतिशत हिस्सा चीन में है, जबकि 65–70 प्रतिशत बहाव भारत में ही होता है. उन्होंने अपनी एक्स पोस्ट में लिखा, "जब यह नदी भारत में प्रवेश करती है, तो इसका दायरा और फैल जाता है."
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बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट में भारत-चीन संबंधों और जल सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ नीरज सिंह मनहास ने इस बांध से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय दी थी. उस वक्त उन्होंने कहा था कि यह परियोजना सिर्फ पर्यावरण से जुड़ी नहीं है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी कई गंभीर चिंताएं पैदा करती है.
उनके मुताबिक़, "चीन इस पानी को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है. चीन इस नदी का पानी रोक कर उसे उत्तरी इलाकों की ओर कर सकता है जहां आबादी ज़्यादा है. इस वजह से भारत में सूखे की समस्या पैदा हो सकती है. एक चिंता यह भी है कि अगर भारत में मानसून के मौसम में चीन इस बांध से ज़्यादा पानी छोड़ दे तो भारतीय इलाकों में बाढ़ आ सकती है."
सिर्फ रणनीतिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय आशंकाएं भी इस परियोजना को लेकर सामने आ रही हैं. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जिन तिब्बती घाटियों में जैव विविधता बेहद समृद्ध है, वे इस बांध परियोजना की वजह से पूरी तरह डूब सकती हैं.
इसके साथ ही, यह क्षेत्र भूकंप संभावित ज़ोन में आता है, जिससे यहां इतने बड़े बांध का निर्माण भविष्य में ख़तरनाक साबित हो सकता है.

चीन के अधिकारी लंबे समय से तिब्बत के स्वायत्त क्षेत्र में स्थित इस इलाके की जलविद्युत क्षमता को लेकर सक्रिय रहे हैं.
यह इलाका एक विशाल घाटी में स्थित है, जिसे धरती की सबसे गहरी और सबसे लंबी घाटियों में से एक माना जाता है. यही वह जगह है जहां यारलुंग सांगपो, जो तिब्बत की सबसे लंबी नदी है, नामचा बरवा पर्वत के पास एक तीखा यू-टर्न लेती है.
शिन्हुआ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस हाइड्रोपावर बांध से मिलने वाली बिजली का बड़ा हिस्सा तिब्बत से बाहर भेजा जाएगा, हालांकि स्थानीय ज़रूरतों का भी ध्यान रखा जाएगा.
चीन पश्चिमी ग्रामीण इलाकों, विशेष रूप से तिब्बती क्षेत्रों की गहरी घाटियों और नदियों पर लंबे समय से योजना बना रहा है ताकि वहां मेगा डैम और जलविद्युत स्टेशन स्थापित किए जा सकें, जो देश के पूर्वी महानगरों की बिजली की ज़रूरतें पूरी कर सकें. राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद इस नीति को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसे "शिदिएन्दोंगसोंग" यानी "पश्चिम की बिजली को पूरब भेजना" कहा जाता है.
चीनी सरकार और सरकारी मीडिया इन परियोजनाओं को ऐसे उपाय के तौर पर पेश करते हैं जो प्रदूषण कम करने, स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने और ग्रामीण तिब्बती आबादी को आर्थिक रूप से आगे बढ़ाने में सहायक हैं.
हालांकि, कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये बांध तिब्बतियों और उनकी ज़मीन के शोषण का नया उदाहरण हैं और अब तक हुए विरोध प्रदर्शनों को कुचल दिया गया है.
बीबीसी को सूत्रों और सत्यापित फ़ुटेज के माध्यम से जानकारी मिली है कि पिछले साल एक अन्य जलविद्युत परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों तिब्बतियों को चीनी सरकार ने गिरफ़्तार कर लिया था. इनमें से कई प्रदर्शनकारियों के साथ मारपीट की गई और कुछ गंभीर रूप से घायल हुए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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