भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब के दो दिवसीय दौरे पर जेद्दा पहुंच गए हैं.
पीएम मोदी के सऊदी अरब पहुँचने से ठीक तीन दिन पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने अपने गृहनगर सियालकोट में कहा था कि केवल सऊदी अरब ने 4700 को वापस भेजा है.
पाकिस्तान सऊदी अरब का पारंपरिक दोस्त और स्ट्रैटेजिक पार्टनर रहा है. ऐसे में भारत और सऊदी अरब के संबंधों में किसी भी तरह की हलचल होती है तो पाकिस्तानी विश्लेषकों की चिंताएं बढ़ जाती हैं.
थिंक टैंक सनोबर इंस्टिट्यूट के निदेशक और पाकिस्तानी विश्लेषक ने पीएम मोदी के सऊदी अरब दौरे को पाकिस्तान के लिए चुनौती के रूप में पेश किया है.
क़मर चीमा ने कहा, ''सऊदी अरब पाकिस्तानी भिखारियों के लिए नया नियम ला रहा है और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरबों डॉलर की डील करने जा रहे हैं. अल्ला रसूल के नाम पर हम भिखारी निर्यात कर रहे हैं और भारत कारोबार करने में लगा है. हम सऊदी अरब को ब्रदरली इस्लामिक मुल्क कहते हैं. जब अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में हैं तो नरेंद्र मोदी सऊदी अरब में हैं. भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय व्यापार क़रीब 50 अरब डॉलर हो चुका है.''

क़मर चीमा ने कहा, ''क्या हमने कभी सोचा था कि सऊदी अरब और भारत में स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप होगी. दूसरी तरफ़ सऊदी अरब हमसे (पाकिस्तान से) कह रहा है कि भिखारियों को मत भेजो, हमारी छवि ख़राब हो रही है. हम इस्लामिक देश हैं, लेकिन ये सब अब नहीं चल रहा है. सऊदी अरब को अरबों डॉलर का बिज़नेस करना है न कि भिखारियों को आयात करना है.''
चीमा ने कहा, ''इस साल के अंत में सऊदी अरब गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) का अध्यक्ष बनेगा. नरेंद्र मोदी केवल सऊदी अरब ही नहीं, बल्कि जीसीसी को प्रभावित करने जा रहे हैं. सऊदी अरब भारत का पांचवां बड़ा कारोबारी साझेदार है. पाकिस्तान तो कहीं टिकता ही नहीं है. आप उन्हें इस्लाम की बात कब तक सुनाएंगे?''
इसी महीने 8-9 अप्रैल को दुबई के क्राउन प्रिंस और यूएई के उपप्रधानमंत्री शेख़ हमदान बिन मोहम्मद बिन राशिद अल मख़्तुम भारत आए थे. यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2023-24 में 80 अरब डॉलर पार कर चुका था.
फ़रवरी में क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हमाद अल-थानी दो दिवसीय दौरे पर भारत आए थे और कई अहम समझौते हुए थे. वहीं, पीएम मोदी दिसंबर 2024 में कुवैत के दौरे पर गए थे. 16 से 17 फ़रवरी तक ओमान की राजधानी मस्कट में इंडियन ओशियन कॉन्फ़्रेंस हुई थी, जिसका सह-आयोजक इंडिया फ़ाउंडेशन था. इस आयोजन में इलाक़े के लगभग सभी अहम देश आए थे, लेकिन पाकिस्तान को न्योता नहीं मिला था. खाड़ी के देशों में क़रीब 90 लाख भारतीय रहते हैं और ये हर साल अरबों डॉलर कमाकर भारत भेजते हैं.
पीएम मोदी और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की मुलाक़ात जेद्दा में होगी. यहां मोदी भारतीय कामगारों से भी मुलाक़ात करेंगे.
अमेरिकी टैरिफ के कारण वैश्विक बाज़ार में निराशा का माहौल है. ऐसे में दुनिया भर के देश अपने सहयोगियों और पड़ोसियों से कारोबारी संबध मज़बूत करने में लगे हैं.

भारत और सऊदी अरब के बीच 2023-2024 में 43 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था. इस दौरे में मोदी और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के बीच रक्षा, व्यापार और ऊर्जा सहयोग बढ़ाने पर बातचीत हो सकती है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार का लक्ष्य भारत को रिफाइनिंग हब बनाने का है.
2019 में मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) ने भारत में 100 अरब डॉलर निवेश करने का वादा किया था. पीएम मोदी की नज़र इस निवेश पर भी होगी.
पीएम मोदी के सऊदी अरब जाने से क़रीब एक महीने पहले 19 मार्च को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ सऊदी अरब गए थे. इस दौरे को लेकर पाकिस्तान में ही शरीफ़ की काफ़ी आलोचना हुई थी.
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने शहबाज़ शरीफ़ के सऊदी दौरे को लेकर पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल से कहा था, ''इस दौरे को लेकर पाकिस्तान ने यह नहीं बताया कि क्या शहबाज़ शरीफ़ को आने का न्योता मिला था? अगर पाकिस्तान ने सऊदी से कहा होगा कि हम आना चाहते हैं तो वो मना तो नहीं ही करता.''
बासित ने कहा, ''निजी दौरे को सरकारी दौरा बनाने का यही ज़रिया होता है. जब शहबाज़ शरीफ़ गए तो रमज़ान का आख़िरी हफ़्ता था और पाकिस्तान के लोग सऊदी जाकर उमरा की ख़्वाहिश रखते हैं. इस दौरे में पीएम के बेटे हमजा शरीफ़ थे, उनकी भतीजी मरियम नवाज़ थीं और इसहाक़ डार थे जो कि उनके रिश्तेदार ही हैं.''
अब्दुल बासित ने कहा था, ''ज़ाहिर है कि हमने ख़ुद ही जाने के लिए कहा था, इसलिए किंग सलमान से शहबाज़ शरीफ़ की मुलाक़ात नहीं हुई. संभव हो कि किंग सलमान बीमार हों, लेकिन इस दौरे के बाद कोई संयुक्त बयान भी जारी नहीं हुआ. जैसे-तैसे आप सऊदी अरब चले तो गए, लेकिन एक संयुक्त बयान तो जारी करवा लेते. यूं ही क्राउन प्रिंस और शहबाज़ शरीफ़ की मुलाक़ात हुई और पाकिस्तान की ओर से एक प्रेस रिलीज जारी कर दिया गया. दूसरी तरफ़ सऊदी अरब ने कोई प्रेस रिलीज तक जारी नहीं किया.''
पाकिस्तान और सऊदी अरब की दोस्तीअप्रैल 2024 में जब शहबाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री बने थे तो पहला दौरा सऊदी अरब का ही किया था.
पाकिस्तान के साथ सऊदी अरब का संबंध ऐतिहासिक रहा है, लेकिन अब चीज़ें बदल रही हैं. पाकिस्तान कभी अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी खेमे का दुलारा हुआ करता था, लेकिन अब वह यहाँ अप्रासंगिक हो चुका है. ऐसे में गल्फ़ के देशों से उसकी क़रीबी पर भी असर पड़ा है.
सऊदी अरब और पाकिस्तान की दोस्ती के बारे में साल 2008 में ब्रुकिंग्स इंटेलिजेंस प्रोजेक्ट के सीनियर फ़ेलो और निदेशक ने लिखा था कि 1960 के दशक से अरब वर्ल्ड के बाहर पाकिस्तान को सऊदी अरब से जितनी मदद मिली, उतनी किसी को नहीं मिली.
मिसाल के तौर पर मई 1998 में पाकिस्तान जब यह तय कर रहा था कि भारत के पाँच परमाणु परीक्षणों का जवाब देना है या नहीं, तब सऊदी अरब ने पाकिस्तान को हर दिन 50 हज़ार बैरल तेल मुफ़्त में देने का वादा किया था.
इससे पाकिस्तान को परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों से लड़ने में काफ़ी मदद मिली थी. सऊदी अरब के इस वादे से पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को परमाणु परीक्षण का फ़ैसला लेने का साहस मिला था.
ब्रुस रिडल ने लिखा है कि पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण के बाद यूएस और यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंधों को कमज़ोर करने में सऊदी अरब ने जमकर मदद की थी.
गल्फ़ से भारत का अब केवल लेन-देन का संंबंध नहींदूसरी तरफ़, अतीत के कई दशकों तक भारत का खाड़ी के देशों से संबंध ऊर्जा के आयात और भारत से ब्लू और व्हाइट कॉलर लेबर के निर्यात तक सीमित था. गल्फ़ के देश अपनी अर्थव्यवस्था के निर्माण और विकास के लिए प्रवासियों पर निर्भर रहे हैं और भारत ऊर्जा के मामले में खाड़ी के देशों पर. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस संबंध को आगे ले गए और खाड़ी के देश भारत के न केवल कारोबारी साझेदार हैं बल्कि स्ट्रैटेजिक पार्टनर भी हैं.
मनोहर लाल पर्रिकर इंस्टिट्यूट फोर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनलिसिस में असोसिएट फेलो रहे और वर्तमान में दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर मोहम्मद मुदस्सिर क़मर भी मानते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार भारत और गल्फ़ के बीच संबंधों को अतीत से बहुत आगे ले जा चुकी है.
डॉ मुदस्सिर क़मर कहते हैं, ''पहले गल्फ़ और भारत के बीच संबंध लेन-देन का था, लेकिन अब दोस्ती और साझेदारी का है. अब गल्फ़ के देश भारत के स्ट्रैटेजिक पार्टनर हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी के साथ डिप्लोमैसी के ज़रिए संबंध को अतीत के ठंडे बस्ते से निकाल, उसमें गर्मजोशी भरी है.''
हालांकि पाकिस्तान ने गल्फ़ में भारत से मिलने वाली चुनौती को कम करने की भी कोशिश की, लेकिन वैसी कामयाबी नहीं मिली.
मई 2017 में पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल रहील शरीफ़ 42 देशों के इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज्म कोअलिशन के कमांडर बनने पर राज़ी हो गए थे. वहीं 2019 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मलेशिया में होने वाले मुस्लिम समिट से ख़ुद को अलग कर लिया था. सऊदी अरब ने इसे मुस्लिम वर्ल्ड में अपने नेतृत्व को चुनौती के रूप में देखा था.
अब पाकिस्तान की फ़िक्र नहीं
लेकिन 2019 में भारत ने जब विवादित नागरिकता संशोधन क़ानून, जिसे मुसलमानों के प्रति भेदभाव करने के रूप में देखा गया, लाया तब भी यूएई ने पीएम मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया था. वहीं 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया गया, तब भी सऊदी अरब और यूएई ने पाकिस्तान की उपेक्षा की थी.
डॉ मुदस्सिर क़मर कहते हैं, ''भारत के सऊदी या फिर यूएई से जो संबंध हैं, उनमें पाकिस्तान अप्रासंगिक हो चुका है. पाकिस्तान अब कोई फैक्टर नहीं है. एक ज़माना था, जब पाकिस्तान यहाँ बड़ा फैक्टर हुआ करता था. 2008 में मुंबई में हमले के बाद सऊदी और यूएई की सोच पाकिस्तान को लेकर बदली है.''
डॉ क़मर कहते हैं, ''मोदी सरकार ने सऊदी या गल्फ़ से संबंध गहरे करने में पाकिस्तान को डिहाइफनेट कर दिया है. यानी पाकिस्तान अब भारत के गल्फ़ से संबंध गहरा करने में चिंता का विषय नहीं है. भारत और सऊदी के संबंधों में अब पाकिस्तान कहीं नहीं है. वाजपेयी सरकार में जसवंत सिंह ने विदेश मंत्री के तौर पर सऊदी से संबंध आगे बढ़ाने में पाकिस्तान को इग्नोर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.''
क्या इससे पहले गल्फ़ के देश भारत से संबंध बढ़ाने में पाकिस्तान की फ़िक्र करते थे?
डॉ मुदस्सिर क़मर कहते हैं, ''बिल्कुल. पाकिस्तान की विदेश नीति में भारत एक अहम फैक्टर है. पाकिस्तान की विदेश नीति भारत केंद्रित रही है. पाकिस्तान ने गल्फ़ के देशों से संबंध इस बुनियाद पर बनाए थे कि उसे भारत से ख़तरा है. पाकिस्तान चाहता रहा है कि गल्फ़ के देश भारत के ख़िलाफ़ उसकी मदद करें. लेकिन भारत और गल्फ़ के संबंध अब बहुत परिपक्व हो चुके हैं और पाकिस्तान कोई फैक्टर नहीं है.''
डॉ क़मर के मुताबिक़, ''पाकिस्तान और सऊदी के बीच संबंध इस्लामिक बुनियाद पर भी बने थे. लेकिन आज की तारीख़ में मज़हब के नाम पर पॉलिटिक्स कमज़ोर पड़ी है. इसलिए भी पाकिस्तान की पकड़ गल्फ में कमज़ोर पड़ी है. दूसरी तरफ़ सऊदी और यूएई मज़हब के नाम पर गोलबंदी से आगे निकल चुके हैं. पाकिस्तान धर्म के आधार पर गल्फ़ के क़रीब जाने की कोशिश करता है, लेकिन यह तरीक़ा अब अप्रासंगिक हो चुका है.''
पाकिस्तान पर कैसा असरपाकिस्तानी पत्रकार रज़ा रूमी ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि रहे से पूछा था कि 'गल्फ़ में भारत के बढ़ते प्रभाव को वह कैसे देखते हैं?'
इस सवाल के जवाब में मुनीर अकरम ने कहा था, ''यह स्वाभाविक परिणाम है. मुझे नहीं लगता है कि भारत के कारण पाकिस्तान के संबंध गल्फ़ से कमज़ोर पड़ेंगे. गल्फ़ के साथ हमारे संबंध अब भी मज़बूत हैं. हमारा गल्फ़ के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक संबंध है. भारत के साथ गल्फ़ के बढ़ते संबंधों को हमें अपने नज़रिए से नहीं देखना चाहिए. बल्कि खाड़ी के देशों के नज़रिए से देखना चाहिए.''
''भारत बहुत बड़ा बाज़ार है. भारत और चीन दुनिया के बड़े बाज़ार हैं और गल्फ़ को अपना तेल इन्हें बेचना है. हमें उनकी मजबूरी समझने की ज़रूरत है. पाकिस्तान को नाराज़ कर गल्फ़ के देश भारत से संबंध नहीं बना रहे हैं. खाड़ी के देश अपने हितों के लिए भारत से संबंध बढ़ा रहे हैं.''
मुनीर अकरम ने कहा था, ''पाकिस्तान को भी चाहिए कि वह ख़ुद को ऐसा बनाए कि लोग आकर कारोबार कर सकें. भारत गल्फ़ में जो कर रहा है, उसका मुक़ाबला हम तभी कर सकते हैं. पाकिस्तान को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है कि केवल गल्फ़ ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षक देश कैसे बने. पाकिस्तान अगर एक आकर्षक बाज़ार, स्थिर अर्थव्यवस्था वाला देश बनेगा तभी दुनिया हमें आदर से देखेगी.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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