उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ जेल से एक अजीबोग़रीब मामला सामने आया है.
यहां के एक कै़दी और एक पूर्व कै़दी पर आरोप है कि उन्होंने जेल के ही दो कर्मचारियों के साथ मिली-भगत कर जेल के सरकारी ख़ाते से 52.85 लाख रुपये निजी खाते में ट्रांसफ़र किए.
आज़मगढ़ के एसपी (सीटी) मधुबन सिंह ने बताया है कि जेल अधीक्षक की फ़र्ज़ी मुहर और हस्ताक्षर का इस्तेमाल कर इसे अंजाम दिया गया.
अब सवाल यह है कि जेल के अंदर रहते हुए वे इस तरह की धोखाधड़ी करने में कामयाब कैसे हुए?
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आज़मगढ़ के एसपी (सिटी) मधुबन सिंह ने कहा, "शिवशंकर और रामजीत ने मुशीर अहमद और चौकीदार अवधेश पांडे के साथ मिलकर योजना बनाई. चारों ने जेल अधीक्षक की फ़र्ज़ी मुहर और हस्ताक्षर तैयार किए.''
जेल अधीक्षक आदित्य कुमार का कहना है कि इसका पता एक साधारण से सवाल से चला.
उन्होंने पूछा था, "बीएचयू में इलाज के लिए भेजे गए पैसे का बचा हुआ हिस्सा अभी तक लौटा क्यों नहीं?"
यह सवाल वरिष्ठ सहायक (लेखा प्रभारी) मुशीर अहमद से किया गया था.
आदित्य कुमार का कहना है कि इस एक सवाल ने ऐसा सिलसिला शुरू किया जिसने जेल के भीतर बुने गए जाल को उजागर कर दिया.
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10 अक्तूबर को आदित्य कुमार ने आज़मगढ़ कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई.
आदित्य कुमार कहते हैं कि मुशीर अहमद से जब उस सवाल का कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला तो शक बढ़ गया और उन्होंने बैंक से खाते का ब्योरा मंगवाया.
उन्होंने बताया कि दरअसल एक क़ैदी बनारस के मेडिकल कॉलेज में भर्ती हुआ था. उसके इलाज के लिए जेल की तरफ़ से पैसे अस्पताल को भेजे गए थे. लेकिन चेक में फ़र्ज़ीवाड़ा करके ये रक़म रामजीत के ख़ाते में ट्रांसफ़र कर ली गई.
कैनरा बैंक के दस्तावेज़ सामने आए तो पता चला कि जेल के सरकारी खाते से 2 लाख 60 हज़ार रुपये एक क़ैदी के निजी खाते में ट्रांसफ़र किए गए हैं.
आज़मगढ़ पुलिस ने बताया कि एक कै़दी, एक पूर्व कै़दी, एक जेल कर्मचारी और जेल के एक चौकीदार की मिली-भगत से सरकारी ख़ाते से 52 लाख 85 हज़ार रुपये निकाल लिए गए. यह रक़म धीरे-धीरे महीनों में निकाली गई और किसी को भनक तक नहीं लगी.
पुलिस ने बताया कि जांच के दौरान पता चला कि रक़म रामजीत यादव नामक एक क़ैदी के खाते में गई थी. रामजीत को 2011 में दहेज हत्या (धारा 304बी) और 498ए के मामलों में दोषी ठहराया गया था. वो 2024 में सज़ा पूरी कर जेल से बाहर आ चुके थे.
पुलिस का कहना है कि शिवशंकर यादव नाम का कै़दी मुशीर अहमद का 'राइटर' यानी लेखा सहायक था. शिवशंकर यादव हत्या के मामले में सज़ा काट रहा था.
दरअसल, जेल में जो कै़दी पढ़े-लिखे होते हैं, उन्हें इस तरह के कामों में लगाया जाता है. ये लोग 2023 से ये काम जेल के भीतर देख रहे थे.
यही वह कड़ी थी जिसने जेल के लेखा विभाग तक कै़दियों की पहुंच का रास्ता बना दिया. पुलिस ने बताया कि शिवशंकर यादव ने चेकबुक से लेकर पासबुक, मुहर और हस्ताक्षर तक की लेखा विभाग की पूरी प्रक्रिया समझ ली थी.
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आज़मगढ़ के एसपी सिटी मधुबन सिंह ने कहा, "मुशीर अहमद, जो चेकबुक और पासबुक का ज़िम्मा संभालता था, उसने ख़ाली चेक निकालकर फ़र्ज़ी साइन किए."
पुलिस के मुताबिक़, सारा काम इतनी सफ़ाई से हुआ कि जेल के रिकॉर्ड में सब कुछ सही दिखता रहा. पासबुक और नक़द रजिस्टर मेल खाते रहे.
जेल अधीक्षक आदित्य कुमार हैरानी जताते हुए कहते हैं, "मैं सोच भी नहीं सकता था कि मेरे अधीन काम करने वाले लोग ऐसा करेंगे."
आदित्य कुमार ने बातचीत में कहा कि यह मामला उनके लिए किसी झटके से कम नहीं था. उन्होंने कहा, "अगर हम उस दिन बैंक स्टेटमेंट न मंगवाते तो शायद यह बिना किसी रोक-टोक के चलता रहता."
उनके मुताबिक़, ''यह साज़िश जेल की चारदीवारी के भीतर तैयार की गई थी और बाहर के सिस्टम ने भी आंखें मूंद ली थीं.''
जेल से बैंक तक फैला नेटवर्कपुलिस ने बताया कि अब तक की जांच में पता चला है कि रामजीत यादव 20 मई 2024 को सज़ा काटकर रिहा हुआ था.
एक अन्य क़ैदी शिवशंकर हत्या के मामले में जेल में है. इन दोनों को कारागार लेखा कार्यालय में वरिष्ठ सहायक मुशीर अहमद के राइटर के रूप में लगाया गया था.
जेल के सभी खातों की पासबुक और चेकबुक वरिष्ठ सहायक मुशीर अहमद के पास थी और बैंक का रोज़मर्रा का काम अवधेश पांडे के ज़िम्मे था. पुलिस के मुताबिक, अवधेश पांडे फ़र्ज़ी चेक रामजीत को देता था और रामजीत उसे अपने नाम पर कैश कराता था.
पुलिस की जांच में ये बात सामने आई है कि रामजीत बाहर आने के बाद भी अपने साथियों से संपर्क में रहा. वह खु़द को जेल ठेकेदार बताकर बैंक जाता था और फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों के आधार पर चेक जमा करता था.
पुलिस ने बताया कि शुरुआत में 10-20 हज़ार रुपये निकाले गए ताकि शक न हो. जब बैंक कर्मियों का भरोसा जीत लिया गया तब रक़म लाखों में ट्रांसफ़र होने लगी.
पुलिस को शक है कि बैंक अधिकारियों की भी अनदेखी या मिली-भगत इसमें शामिल रही होगी, क्योंकि जेल के सरकारी ख़ाते से इतने बड़े ट्रांज़ैक्शन बिना क्रॉस-वेरिफिकेशन के नहीं हो सकते थे.
पुलिस जांच में सामने आया कि बैंक अधिकारियों ने बार-बार के ट्रांजै़क्शन पर कभी सवाल नहीं उठाया.
एक ही सरकारी ख़ाते से बार-बार एक ही नाम पर निकासी होना भी उन्हें संदिग्ध नहीं लगा. अब पुलिस की टीम बैंक कर्मचारियों की भूमिका की भी जाँच कर रही है.
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पुलिस पूछताछ में अभियुक्त रामजीत यादव ने बताया कि उसने घोटाले की रक़म से अपनी बहन की शादी धूमधाम से की थी. पुलिस के मुताबिक, इस शादी में क़रीब 25 लाख रुपये ख़र्च किए गए. अभियुक्त ने 3.75 लाख रुपये में बुलेट मोटरसाइकिल ख़रीदी.
कुछ रक़म से उसने पुराने क़र्ज़ चुकाए और बाक़ी रक़म अपने साथियों में बांट दी. मुशीर अहमद ने 7 लाख, शिवशंकर ने 5 लाख और अवधेश ने 1.5 लाख रुपये अपने निजी उपयोग में ख़र्च किए.
इस मामले में भारतीय न्याय संहिता की धाराओं 318(4), 61(2), 316(5), 338 और 336(3) के तहत कार्रवाई चल रही है.
11 अक्तूबर की रात पुलिस ने चारों अभियुक्तों को पूछताछ के बाद कोतवाली परिसर से गिरफ़्तार कर लिया.
इस मामले में कई प्रयास के बाद भी अभियुक्त पक्ष से कोई बातचीत नहीं हो पाई है.
डीआईजी जेल शैलेंद्र कुमार ने शनिवार को ज़िला कारागार का निरीक्षण किया. उन्होंने क़रीब आठ घंटे तक रिकॉर्ड खंगाले और अधीक्षक व अन्य अधिकारियों से पूछताछ की.
डीआईजी ने कहा कि यह "जेल प्रशासन के भीतर विश्वास और निगरानी की भारी चूक" का मामला है.
आज़मगढ़ जेल के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "यह घटना दिखाती है कि जेलों की वित्तीय प्रणाली कितनी लापरवाह हो सकती है."
उन्होंने कहा, "यह अब मान लेना ग़लत है कि कै़दी सिर्फ़ बंद हैं और कुछ नहीं कर सकते. जब अपराध जेल के भीतर ही संगठित हो जाए तो 'जेल के अंदर से खेल' हो जाता है."
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