पितरों को विदाई देने की संपूर्ण विधि
हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष का अंतिम दिन, जिसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है, पितरों को विदाई देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन, पूरे पखवाड़े के तर्पण और श्राद्ध के बाद, सभी पितरों को एक साथ स्मरण और विसर्जन किया जाता है। इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध और तर्पण से वे पितर भी संतुष्ट होते हैं, जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है.
सुबह का संकल्प और स्नानसर्वपितृ अमावस्या की शुरुआत सूर्योदय से पहले स्नान से होती है। गंगाजल या किसी पवित्र नदी में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद संकल्प लें कि आज सर्वपितृ अमावस्या पर आप अपने सभी पितरों को तर्पण और विसर्जन करेंगे। यह दिन उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय माना जाता है.
पिंडदान और तर्पण की विधिइस दिन तर्पण के लिए तिल, जल, पुष्प और चावल का उपयोग किया जाता है। कुशा के आसन पर बैठकर तीन बार पितरों का नाम और गोत्र उच्चारित करते हुए जल अर्पित करें। पके हुए चावल, तिल और घी से बने पिंड अर्पित करना आवश्यक है। इससे पितरों की आत्मा तृप्त होकर विदा होती है.
ब्राह्मण भोजन और दान का महत्वपितरों को विदाई देने की यह विधि तब पूर्ण मानी जाती है जब ब्राह्मण को भोजन कराया जाए। भोजन में खीर, पूड़ी, सब्जी और मौसमी फल अर्पित किए जाते हैं। ब्राह्मण को दक्षिणा देने के साथ ही गाय, कुत्तों, कौओं और जरूरतमंदों को अन्न देना भी अनिवार्य परंपरा है.
पितरों की विदाई का विशेष विधानपूजा के अंत में घी का दीपक जलाकर पितरों से प्रार्थना करें कि हे पितृदेव, आप तृप्त होकर अपने लोक को पधारें और हमें आशीर्वाद दें। इसके बाद जल में तिल अर्पित करके तीन बार विसर्जन करें। यही क्षण पितरों की औपचारिक विदाई का होता है.
इस दिन के नियम- मांस, मदिरा और तमसिक भोजन से बचना चाहिए.
- घर में सात्विकता और शुद्धता बनाए रखें.
- किसी भी प्राणी को भोजन कराना पुण्यफल देता है.
मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया श्राद्ध, पूरे वर्ष का पितृ ऋण उतार देता है और कुल में सुख-समृद्धि लाता है। यही कारण है कि इस दिन को पितरों की सामूहिक विदाई का पर्व कहा जाता है.
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