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अर्जित चौबे ने नामांकन से क्यों लिया एक कदम पीछे? जानें पूरी कहानी

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अर्जित चौबे का चुनावी मैदान से हटना

अर्जित चौबे ने चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया।

बिहार के भागलपुर विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी ने रोहित पांडे को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। जैसे ही नाम का ऐलान हुआ, विरोध की लहर उठ गई। पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे, अर्जित शाश्वत चौबे, जो 2015 में बीजेपी के उम्मीदवार थे, ने बगावती रुख अपनाया और निर्दलीय चुनाव लड़ने का इरादा जताया। लेकिन नामांकन के अंतिम क्षणों में सब कुछ बदल गया।

जब अर्जित चौबे को बीजेपी से टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने निर्दलीय नामांकन भरने का निर्णय लिया और उनके साथ समर्थकों की एक बड़ी संख्या भी थी। लेकिन नामांकन जमा करने से पहले, उनके पिता अश्विनी चौबे के एक फोन कॉल ने उन्हें रोक दिया।

अर्जित चौबे के निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण बीजेपी आलाकमान लगातार अश्विनी चौबे से संपर्क में था। इसी बीच, नामांकन न भरने की चर्चा भी चल रही थी। यही कारण था कि अंतिम समय में चौबे ने अपने बेटे को नामांकन जमा करने से मना कर दिया।

एक फ़ोन कॉल ने सब कुछ बदल दिया

अर्जित चौबे ने भागलपुर सीट पर प्रत्याशी के ऐलान के बाद से ही बगावती तेवर अपनाए थे। उन्होंने स्पष्ट किया था कि वे चुनाव लड़ेंगे और नामांकन फॉर्म भी तैयार रखा था। 17 अक्टूबर को, वे अपने समर्थकों के साथ कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे, जहां जोरदार नारेबाजी हो रही थी। इसी दौरान उनका फोन बजा और उन्होंने अपने पिता के आदेश का पालन करते हुए नामांकन जमा नहीं किया।

नामांकन न भरने पर अर्जित का बयान

43 वर्षीय चौबे ने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए चुनावी मैदान से हटने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि निर्दलीय चुनाव लड़ने के अपने फैसले के बाद से उन पर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का दबाव बना हुआ था। उन्होंने कहा, “मैं उनकी अवज्ञा कैसे कर सकता हूं? मैं अपनी पार्टी और देश के खिलाफ बगावत नहीं कर सकता।”


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