New Delhi, 8 अक्टूबर . आयुर्वेद में सेहत के सुधार के लिए उपयोग होने वाली कई औषधियों में से एक है ‘कॉमिफोरा मुकुल’, जिसे आयुर्वेद में ‘गुग्गुल’ कहा जाता है. यह शरीर से दोषों को संतुलित कर रोगों से मुक्ति दिलाता है. इस आयुर्वेद को वात दोष से जुड़े रोगों के लिए सर्वोत्तम माना गया है.
सुश्रुत संहिता और चरक संहिता में ‘गुग्गुल’ को एक चमत्कारी औषधि बताया गया है. यह जोड़ों के दर्द, गठिया, साइटिका, स्पॉन्डिलाइटिस, मोटापा, यकृत रोग, बवासीर, एनीमिया, और पेट के कीड़ों जैसी कई समस्याओं में प्रभावी है. यह वात, पित्त, और कफ दोषों को संतुलित करता है, खासकर वात दोष को नियंत्रित करने में कारगर है. गुग्गुल शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालकर स्वास्थ्य को ठीक करने में मदद करता है.
आधुनिक शोध ने भी गुग्गुल के गुणों को प्रमाणित किया है. इसमें मौजूद ‘गुग्गुलस्टेरोन’ यौगिक एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, और दर्द निवारक गुणों से युक्त है, जो इंफ्लामेशन और दर्द को कम करता है. यह हृदय स्वास्थ्य, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण और मेटाबॉलिज्म को बेहतर बनाने में सहायक माना गया है.
गुग्गुल में 28 से अधिक जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है, जो इसे एक शक्तिशाली औषधि बनाता है.
चरक संहिता के अनुसार, यह जोड़ों के दर्द, सूजन और मांसपेशियों की जकड़न को कम करता है. साइटिका और स्पॉन्डिलाइटिस में हड़जोड़, अश्वगंधा चूर्ण, और गुग्गुल तेल से मालिश के साथ इसका उपयोग और प्रभावी होता है. यह मोटापा कम करने, पाचन तंत्र को दुरुस्त करने और मूत्र विकारों में भी लाभकारी है.
गुग्गुल केवल रोगों का इलाज ही नहीं करता, बल्कि जीवनशैली को बेहतर बनाता है. यह शरीर को डिटॉक्सिफाई कर ऊर्जा का स्तर बढ़ाता है. आयुर्वेद इसे वात विकारों के लिए सर्वश्रेष्ठ उपचार मानता है. हालांकि, इसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए, ताकि सही खुराक और विधि का पालन हो.
गुग्गुल आयुर्वेद का एक अनमोल उपहार है, जो प्राकृतिक तरीके से स्वास्थ्य को संतुलित करता है और जीवन में नई ऊर्जा भरता है.
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एनएस/एएस
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