New Delhi, 18 अक्टूबर . पीपल का वृक्ष भारतीय संस्कृति में न सिर्फ धार्मिक, बल्कि आयुर्वेदिक महत्व भी रखता है. इसे एक संपूर्ण औषधीय वृक्ष माना गया है. संस्कृत में इसे अश्वत्थ कहा जाता है. यह वृक्ष त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है. धार्मिक दृष्टि से इसकी पूजा की जाती है और वैज्ञानिक दृष्टि से यह 24 घंटे ऑक्सीजन उत्सर्जन करने वाला अद्वितीय वृक्ष है.
आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता और भावप्रकाश निघंटु में पीपल को वात, पित्त और कफ दोषों का नाशक, रक्तशोधक, हृदय के लिए हितकारी और शीतल प्रकृति का बताया गया है. इसके फल, पत्ते, छाल, दूध (लेटेक्स) और जड़ सभी अंग औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं.
पीपल की छाल का काढ़ा श्वास रोग, खांसी और दस्त जैसी समस्याओं में बहुत उपयोगी होता है. यह कफ को साफ कर सांस लेने में राहत देता है. इसके हरे पत्तों का लेप त्वचा विकारों जैसे फोड़े, फुंसी, डैंड्रफ, खुजली और फंगल संक्रमण में बेहद प्रभावशाली होता है.
दांत दर्द और मसूड़ों की सूजन में इसके डंठल से निकलने वाला सफेद दूध (लेटेक्स) उपयोगी होता है. दस्त और आंतों की कमजोरी में पीपल की सूखी छाल का चूर्ण दही के साथ सेवन करने से लाभ होता है. हृदय रोगों के लिए पीपल के सूखे पत्तों का काढ़ा शहद के साथ सेवन करना दिल को मजबूती देता है और धड़कन को सामान्य करता है. इसके अलावा, पीपल के फल का चूर्ण शहद या दूध के साथ लेने से पुरुषों में ऊर्जा और स्फूर्ति मिलती है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, पीपल की पूजा करने से पितृ दोष और शनि संबंधी दोषों की शांति होती है. इसकी छाया में ध्यान करना मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत माना जाता है. यह वृक्ष न केवल पर्यावरण को शुद्ध करता है, बल्कि मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है.
हालांकि, इसके उपयोग में सावधानी भी आवश्यक है. पीपल का दूध आंखों या अत्यंत संवेदनशील त्वचा पर नहीं लगाना चाहिए और गर्भवती स्त्रियों को किसी भी पीपल आधारित औषधि का सेवन वैद्य की सलाह से ही करना चाहिए.
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पीआईएस/डीकेपी
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