New Delhi, 9 नवंबर . गृह मंत्रालय, India Government और राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, Bhopal ने तीन नए आपराधिक कानूनों पर 8-9 नवंबर को Bhopal में दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. सम्मेलन में सभी राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों के 120 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें आपराधिक न्याय प्रणाली के तीन प्रमुख स्तंभों- न्यायपालिका, अभियोजन और Police- पर चर्चा की गई. सम्मेलन के रिसोर्स पर्सन्स को शैक्षणिक संस्थानों और सेवारत वरिष्ठ अधिवक्ताओं से चुना गया था.
केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि Prime Minister मोदी के नेतृत्व में India Government एक सुरक्षित, पारदर्शी और साक्ष्य-आधारित आपराधिक न्याय प्रणाली का निर्माण कर रही है. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में देश ने त्वरित न्याय के एक नए युग में प्रवेश किया है. उन्होंने दोहराया कि नए आपराधिक कानूनों का उद्देश्य India की आपराधिक न्याय प्रणाली को उपनिवेशवाद से मुक्त करना और इसे अधिक पीड़ित-केंद्रित और प्रौद्योगिकी-सक्षम बनाना है. गृह सचिव ने राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, Bhopal द्वारा इन कानूनों के कार्यान्वयन में किए गए महत्वपूर्ण संस्थागत योगदान की सराहना की, जिसने नए ढांचे के तहत पेश किए गए प्रमुख तकनीकी नवाचारों के लिए मॉडल नियमों-मानक संचालन प्रक्रियाओं का मसौदा तैयार किया है. इनमें ई-साक्ष्य, ई-समन, सामुदायिक सेवा और न्याय श्रुति शामिल हैं.
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी नए आपराधिक कानूनों का आधार है, जिसका उद्देश्य लंबे समय से चली आ रही देरी की समस्या का समाधान कर एक त्वरित और अधिक कुशल न्याय प्रणाली सुनिश्चित करना है. नए कानूनों में जांच, मुकदमे और अन्य प्रक्रियात्मक चरणों में देरी को कम करने के लिए कई प्रावधान शामिल किए गए हैं. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति ने नए कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आवश्यक तकनीकी एकीकरण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
गोविंद मोहन ने कहा कि अब हमारा ध्यान तीन नए आपराधिक कानूनों के तहत शुरू किए गए सुधारों को निरंतर अपनाने, उनमें लगातार सुधार करने और उन्हें संस्थागत बनाने पर केंद्रित होना चाहिए. राज्य Governmentों को कार्यान्वयन की प्रगति का आंकलन करने, परिचालन संबंधी बाधाओं की पहचान करने और बदलती न्यायिक एवं तकनीकी आवश्यकताओं के अनुरूप नियमों, अधिसूचनाओं और मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को समय पर अपडेट करने के लिए डेडिकेटेड निगरानी तंत्र स्थापित करने चाहिए. Police विभागों को जांच और अभियोजन वर्कफ्लो के पूर्ण डिजिटलीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ई-साक्ष्य, ई-समन और आईसीजेएस जैसी प्रणालियों का उपयोग संचालन के डिफॉल्ट मोड के रूप में किया जाए.
सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य न्यायिक अकादमियों के मार्गदर्शन में न्यायपालिका को न्यायिक प्रक्रिया के डिजिटलीकरण में प्रयास जारी रखने चाहिए और Police एवं अभियोजन मंचों के साथ न्यायालय प्रणालियों का पूर्ण एकीकरण सुनिश्चित करना चाहिए. Police, अभियोजन, फोरेंसिक, कारागार और न्यायपालिका जैसे स्तंभों के बीच नियमित फीडबैक लूप को वास्तविक समय में समस्या समाधान और डिजिटल वर्कफ्लो में सुधार के लिए संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए. नए कानूनों के तहत परिकल्पित एक आधुनिक, कुशल और प्रौद्योगिकी-सक्षम आपराधिक न्याय प्रणाली के दृष्टिकोण को पूरी तरह से साकार करने के लिए, सभी हितधारकों को सामूहिक रूप से सहयोग, डेटा-आधारित निर्णय लेने और निरंतर नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए.
राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस ने कहा कि यह एक अनूठा अवसर है जहां आपराधिक न्याय प्रणाली के तीन स्तंभ- Police, अभियोजन और न्यायपालिका- एक साथ आए. उन्होंने संयुक्त क्षमता निर्माण कार्यक्रम के विचार के लिए गृह मंत्रालय की सराहना की. कार्यान्वयन में जांचकर्ताओं, अभियोजकों और न्यायपालिका के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बोलते हुए न्यायमूर्ति बोस ने नए तकनीकी नवाचारों, आईसीटी एप्लीकेशंस और नए फ्रेमवर्क के तहत शुरू की गई अवधारणाओं के साथ तालमेल बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने दोहराया कि इस तरह के क्षमता निर्माण कार्यक्रम प्रतिभागियों को नए कानूनी और तकनीकी परिदृश्य के बारे में सीखने, सहयोग करने और अपनी समझ को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं.
दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन ने एक अनूठा और अमूल्य मंच प्रदान किया जहां आपराधिक न्याय प्रणाली के तीन प्रमुख स्तंभ—Police, अभियोजन और न्यायपालिका—एक साथ आए. इस सम्मेलन के एजेंडे में नए आपराधिक कानूनों के तहत शुरू किए गए मूलभूत सुधारों, वैज्ञानिक जांच के लिए तकनीक-केंद्रित दृष्टिकोण, न्यायिक प्रक्रिया में डिजिटल परिवर्तन, डिजिटल साक्ष्यों का संचालन, अभियोजन निदेशालय की भूमिका और समयबद्ध न्याय प्रदान करने के लिए एक प्रभावी तंत्र के रूप में तैयार की गई नई समय-सीमाओं पर गहन चर्चा शामिल थी. कार्यक्रम में व्यावहारिक केस स्टडी, इंटरैक्टिव सत्र, प्रख्यात कानूनी विशेषज्ञों, न्यायपालिका और Police के साथ विचार-विमर्श और विकसित किए गए डिजिटल प्लेटफॉर्म का व्यावहारिक अनुभव भी शामिल था.
बता दें कि 26 राज्यों-केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा ई-साक्ष्य, 24 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा ई-समन, 20 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों के 16 उच्च न्यायालयों द्वारा न्याय-श्रुति और 28 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दंड के रूप में सामुदायिक सेवा पर अधिसूचनाएं जारी की गई हैं. नए आपराधिक कानूनों के अंतर्गत, 15,30,790 Police अधिकारियों, 12,100 अभियोजन अधिकारियों, 43,941 कारागार अधिकारियों, 3,036 फोरेंसिक वैज्ञानिकों और 18,884 न्यायिक अधिकारियों का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है.
आज तक भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत लगभग 50 लाख First Information Report दर्ज की गई हैं. 33 लाख से अधिक आरोप पत्र या अंतिम रिपोर्ट दायर की गई हैं और 22 लाख साक्ष्य आईडी बनाई गई हैं. 14 लाख से अधिक पीड़ितों को डिजिटल सूचनाओं के माध्यम से ऑटोमेटेड केस अपडेट प्राप्त हुए हैं. 1 जुलाई 2024 से 38 हजार से अधिक जीरो First Information Report दर्ज की गईं.
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डीकेपी/
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