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अच्छे रिसर्चर्स के लिए 'तरसेगा' अमेरिका, ट्रंप सरकार की नीतियां पड़ने वाली हैं भारी, जानिए कैसे

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US Education News: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार के फैसले के बाद अमेरिका ने रिसर्चर्स के लिए रिसर्च फंडिंग स्कीम बंद कर दी है। इस फैसले का असर DEI प्रोग्राम पर भी देखने को मिला है। अपने फैसले को लेकर ट्रंप सरकार का कहना है कि कुछ यूनिवर्सिटीज जैसे हार्वर्ड और कोलंबिया के रिसर्चर्स ने फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। सरकार का दावा है कि ये यूनिवर्सिटी DEI प्रोग्राम को बढ़ावा दे रही हैं, जो डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ हैं। हालांकि, ट्रंप सरकार के फैसले के बाद अमेरिका की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं, क्योंकि अब रिसर्चर्स देश छोड़कर जाने लगे हैं। उनका अगला ठिकाना यूरोप है, जहां के देश बांहें खोलकर रिसर्चर्स का स्वागत कर रहे हैं। अमेरिका के साइंस ऑफिस ने अब तक देश की कुछ सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में छह अरब डॉलर से ज्यादा के ग्रांट और कॉन्ट्रैक्ट रोक दिए हैं या वापस ले लिए हैं। ये ट्रंप की उन कोशिशों का हिस्सा है, जिसके तहत वो यूनिवर्सिटी में एडमिशन, पढ़ाई और कामकाज के तरीकों को बदलना चाहते हैं। क्यों सरकार ने रोकी फंडिंग?सरकार ने आरोप लगाया है कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी गाजा में युद्ध से जुड़े प्रदर्शनों के दौरान हिंसा और उत्पीड़न को रोकने में नाकामयाब हुई हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया में भी फंडिंग रोक दी गई है। इसका कारण एक ट्रांसजेंडर एथलीट का महिलाओं के खेल में हिस्सा लेना बताया गया है। ट्रंप ने इसे महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा पर हमला बताया है। वहीं, कॉर्नेल, प्रिंसटन और नॉर्थवेस्टर्न में भी ग्रांट रोक दिए गए हैं, लेकिन इसकी कोई साफ वजह नहीं बताई गई है। यूरोप के देश कर रहे अमेरिकी रिसर्चर्स का स्वागतजहां एक तरफ सरकार रिसर्चर्स की फंडिंग रोक रही है, दूसरी ओर यूरोपीय देशों की सरकारें उनका स्वागत कर रही हैं। फ्रांस और नॉर्वे जैसे देशों ने हाल ही में रिसर्चर्स के लिए नए फंडिंग प्रोग्राम लॉन्च किए हैं। 23 अप्रैल, 2025 को नॉर्वे की रिसर्च काउंसिल ने ऐलान किया कि वो दुनिया भर से रिसर्चर्स को आसानी से भर्ती करने के लिए 100 मिलियन क्रोनर (लगभग 7.2 मिलियन डॉलर) की फंडिंग देगी। फ्रांस के रिसर्च मंत्री फिलिप बैप्टिस्ट ने भरोसा दिलाया कि फ्रांस अमेरिका में फंडिंग में कटौती से प्रभावित रिसर्चर्स की मदद करने के लिए तैयार है। लगभग 300 रिसर्चर्स ने पहले ही एक फ्रांसीसी यूनिवर्सिटी द्वारा शुरू किए गए प्रोग्राम के लिए साइन अप कर लिया है। इसी तरह की योजना चेक गणराज्य, ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया, एस्टोनिया, लातविया, स्पेन, स्लोवेनिया, जर्मनी, ग्रीस, बुल्गारिया और रोमानिया में भी चल रही है।
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