सुशील कुमार, लखनऊ: मां वैष्णो देवी के दर्शन के बाद नौ मई की रात लौट रहे लोग वहां से किसी तरह घर पहुंचने को परेशान थे। कटरा स्टेशन पर ब्लैकआउट था। किसी तरह ट्रेन में चढ़े। ट्रेन में भी लाइट बंद। हर कोच में आरपीएफ। मोबाइल की लाइट जलाने पर भी पाबंदी। इंजन की लाइट भी बंद। ट्रेन 40 से 50 किमी की स्पीड से चलनी शुरू हुई। जम्मू स्टेशन से आगे बढ़ी तो आसमान में जलते हुए रॉकेट दिखने लगे। यह देख यात्री घबरा गए। आरपीएफ जवानों ने सबको संभाला। खिड़कियों के पर्दे भी बंद करवा दिए। वैष्णो देवी के दर्शन कर लौटे कुनाल मिश्रा ने दहशत भरे सफर का हाल कुछ इस तरह बयां किया। उन्होंने कहा कि वह सफर जीवन में कभी नहीं भूलेंगे।कुनाल ने बताया कि वह पूरे परिवार और रिश्तेदारों संग बेगमपुरा एक्सप्रेस से वैष्णो देवी के दर्शन करने गए थे। सात मई को पहुंचे। शाम साढ़े सात बजे चढ़ाई शुरू की। माहौल एकदम सामान्य था। रात करीब डेढ़ बजे दर्शन के बाद अगले दिन सुबह करीब 11 बजे भैरव बाबा के भी दर्शन किए। थकान के कारण घोड़े पर बैठकर उतरे। शाम छह बजे तक नीचे पहुंचे तो पुलिस हर तरफ लाइटें बंद करवा रही थी। मोबाइल की लाइट भी नहीं जलाने दी गई। करीब सात बजे त्रिकुट पर्वत के चढ़ाई के रास्तों की भी लाइटें बंद हो गईं। पूरी पर्वत शृंखला अंधेरे में थी। नीचे उतरकर किसी तरह होटल पहुंचे और थकान की वजह से सो गए। इमरजेंसी में निकलेकुनाल ने बताया कि 12 मई को लौटने का प्लान बनाया था, लेकिन हालात बिगड़ते देख नौ मई को लौटने का फैसला किया। लखनऊ की ट्रेनें फुल थीं। इस कारण शाम को कटरा से ऋषिकेश जाने वाली ट्रेन में तत्काल टिकट लिया। किसी तरह कटरा पहुंचे। वहां लौटने वालों की लंबी कतार थी। आने वाले नदारद थे। स्टेशन के साथ ट्रेन और इंजन की सारी लाइटें भी बंद थीं। ट्रेन में पैर रखने तक की जगह नहीं थी। किसी तरह सीट पर गए। फिर अंबाला पहुंचने के बाद चैन की सांस ली। हर आंख में खौफअनूप मिश्रा ने बताया कि ट्रेन के अंदर से आसमान में रॉकेट और मोर्टार दिखने शुरू हुए तो लोग दहशत में आ गए। डर के माहौल में सब हाथ जोड़कर मां वैष्णो देवी को याद कर प्रार्थना कर रहे थे। महिलाओं ने सुरक्षित यात्रा के लिए मनौतियां मांगनी शुरू कर दीं। ट्रेन अंबाला पहुंची तो कोच के अंदर की लाइटें जलीं और सबने राहत की सांस ली। कम हो गए श्रद्धालुश्रद्धालु रामकुमार ने बताया कि लौटते वक्त कटरा में श्रद्धालु न के बराबर दिखे। कई श्रद्धालु फंस गए थे। टिकट नहीं मिल रहे थे। सबने अपना ट्रिप रद्द कर लौटने को बेताब थे। कटरा पहुंचने वाली ट्रेनें खाली थीं, जबकि वहां से निकल रही ट्रेनों में पैर रखने तक की जगह नहीं थी।
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