मार्गशीर्ष माह में श्रीकृष्ण भक्ति का विशेष महत्व है, गीता में स्वयं भगवान ने कहा है कि महीनों में ‘मैं मार्गशीर्ष माह हूँ’ तथा सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारम्भ किया था। धार्मिक मान्यताएं यह कहती हैं कि मार्गशीर्ष मास में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए, यह औषधि का कार्य करती हैं, जो शरीर को स्वस्थ, मन को प्रसन्न एवं आत्मा को मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर करती हैं।
मार्गशीर्ष माह में स्नान करते समय ‘ओम नमो नारायण’ या गायत्री मंत्र का उच्चारण करना फलदायी होता है। समस्त महीनों में मार्गशीर्ष श्रीष्ण का ही स्वरूप है। इस महीने को अगहन या अग्रहायण माह भी कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण ने गोपियों को मार्गशीर्ष माह की महत्ता बताई थी तथा उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष के महीने में स्नान, दान, पूजन से मैं सहज ही प्राप्त हो जाता हूं अतः इस माह में पवित्र नदियों के तट पर स्नान का विशेष महत्व माना गया है। जिस प्रकार कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं, उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा के एक माह पश्चात पड़ने वाली मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भी स्नान, दान एवं धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है।
मान्यताओं के अनुसार इस दिन स्नानार्थियों को स्नान-दान देता है बत्तीस गुना फल। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का भी विशेष आध्यात्मिक महत्व है। जिस दिन मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा तिथि हो, उस दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है जो धर्मशास्त्र अनुसार अमोघ फलदायी होती है। जब यह पूर्णिमा उदयातिथि के रूप में सूर्योदय से विद्यमान हो, उस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा सामर्थ अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है अतः इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
मार्गशीर्ष माह में स्नान करते समय ‘ओम नमो नारायण’ या गायत्री मंत्र का उच्चारण करना फलदायी होता है। समस्त महीनों में मार्गशीर्ष श्रीष्ण का ही स्वरूप है। इस महीने को अगहन या अग्रहायण माह भी कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण ने गोपियों को मार्गशीर्ष माह की महत्ता बताई थी तथा उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष के महीने में स्नान, दान, पूजन से मैं सहज ही प्राप्त हो जाता हूं अतः इस माह में पवित्र नदियों के तट पर स्नान का विशेष महत्व माना गया है। जिस प्रकार कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं, उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है। कार्तिक पूर्णिमा के एक माह पश्चात पड़ने वाली मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भी स्नान, दान एवं धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है।
मान्यताओं के अनुसार इस दिन स्नानार्थियों को स्नान-दान देता है बत्तीस गुना फल। मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का भी विशेष आध्यात्मिक महत्व है। जिस दिन मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा तिथि हो, उस दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है जो धर्मशास्त्र अनुसार अमोघ फलदायी होती है। जब यह पूर्णिमा उदयातिथि के रूप में सूर्योदय से विद्यमान हो, उस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा सामर्थ अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है अतः इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
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