बरेली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 'राजनीतिक इस्लाम' और उपनिवेशवाद पर दिए गए बयान ने एक बार फिर राष्ट्रीय बहस को जन्म दिया है। गोरखपुर में एक सार्वजनिक सभा में योगी ने कहा कि इतिहास की किताबों में ब्रिटिश और फ्रांसीसी उपनिवेशवाद पर विस्तार से चर्चा होती है, लेकिन 'राजनीतिक इस्लाम' के प्रभाव को अनदेखा किया जाता है।
उन्होंने अपने बयान में इसे एक बड़ी ऐतिहासिक चूक करार दिया। इस बयान पर जहां विपक्ष ने सांप्रदायिकता का आरोप लगाया, वहीं बरेली के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने इसका समर्थन करते हुए इस मुद्दे पर पारदर्शी चर्चा की मांग की है।
मौलाना रिजवी का समर्थनमौलाना रजवी ने अपने बयान में कहा, इस्लाम कभी सियासत का हिस्सा बनने की इजाजत नहीं देता। धार्मिक सिद्धांतों को राजनीतिक हथियार बनाना समाज में विभाजन पैदा करता है। मुख्यमंत्री ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है, जिस पर खुली और संतुलित चर्चा जरूरी है।
उन्होंने इस्लामी शासनकाल में गैर-मुसलमानों के साथ सहिष्णुता और न्यायपूर्ण व्यवहार के ऐतिहासिक उदाहरणों को भी सामने लाने की बात कही। उनका यह बयान हलाल प्रमाणीकरण जैसे विवादों को भी फिर से चर्चा में ला रहा है, जो लंबे समय से देश में बहस का विषय रहा है।
खुली चर्चा की जरूरतरजवी का कहना है कि इस तरह की चर्चा से धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा और सांप्रदायिक तनाव कम होगा। उनके इस रुख ने मुस्लिम समुदाय के भीतर भी बहस छेड़ दी है। कई धार्मिक विद्वान मानते हैं कि भारत जैसे बहुलवादी देश में इस मुद्दे को संवेदनशीलता और संतुलन के साथ उठाना जरूरी है।
दूसरी ओर विपक्षी दलों ने योगी के बयान को धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास करार दिया, जबकि भाजपा समर्थकों ने इसे साहसिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण बताया।
उन्होंने अपने बयान में इसे एक बड़ी ऐतिहासिक चूक करार दिया। इस बयान पर जहां विपक्ष ने सांप्रदायिकता का आरोप लगाया, वहीं बरेली के प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने इसका समर्थन करते हुए इस मुद्दे पर पारदर्शी चर्चा की मांग की है।
मौलाना रिजवी का समर्थनमौलाना रजवी ने अपने बयान में कहा, इस्लाम कभी सियासत का हिस्सा बनने की इजाजत नहीं देता। धार्मिक सिद्धांतों को राजनीतिक हथियार बनाना समाज में विभाजन पैदा करता है। मुख्यमंत्री ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है, जिस पर खुली और संतुलित चर्चा जरूरी है।
उन्होंने इस्लामी शासनकाल में गैर-मुसलमानों के साथ सहिष्णुता और न्यायपूर्ण व्यवहार के ऐतिहासिक उदाहरणों को भी सामने लाने की बात कही। उनका यह बयान हलाल प्रमाणीकरण जैसे विवादों को भी फिर से चर्चा में ला रहा है, जो लंबे समय से देश में बहस का विषय रहा है।
खुली चर्चा की जरूरतरजवी का कहना है कि इस तरह की चर्चा से धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा और सांप्रदायिक तनाव कम होगा। उनके इस रुख ने मुस्लिम समुदाय के भीतर भी बहस छेड़ दी है। कई धार्मिक विद्वान मानते हैं कि भारत जैसे बहुलवादी देश में इस मुद्दे को संवेदनशीलता और संतुलन के साथ उठाना जरूरी है।
दूसरी ओर विपक्षी दलों ने योगी के बयान को धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास करार दिया, जबकि भाजपा समर्थकों ने इसे साहसिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण बताया।
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