नई दिल्ली: संयुक्त अरब अमीरात का रेगिस्तानी शहर दुबई चावल पैद नहीं करता है। वह चावल के लिए खुद आयात पर निर्भर है। ऐसे में बांग्लादेश द्वारा UAE से चावल ख़रीदने पर सवाल उठ रहे हैं। बांग्लादेश के खाद्य विभाग ने कहा है कि दुबई से आने वाला चावल असल में भारतीय है, लेकिन आपूर्तिकर्ता का कार्यालय दुबई में है।अर्थशास्त्रियों के अनुसार, दुबई के रास्ते चावल आयात करने पर अतिरिक्त लागत आती है, जो जनता के पैसे की बर्बादी है। दुबई चावल उत्पादक देश नहीं है, बल्कि वह भारत से चावल आयात करता है और उसे पुनः निर्यात करता है। हालाँकि भारत से सीधे चावल आयात करने का अवसर है, लेकिन किसी मध्यस्थ कंपनी के माध्यम से खरीदने के यूनुस सरकार के फैसले ने सवाल खड़े कर दिए हैं।   
   
   
भारत का चावल वाया म्यांमार और दुबई
bddigest.com पर छपी एक खबर के अनुसार, बांग्लादेश के खाद्य विभाग के खरीद विभाग के निदेशक मोहम्मद मोनिरुज्जमां ने कहा-चावल आपूर्तिकर्ता का कार्यालय दुबई में है, लेकिन चावल का वास्तविक सोर्स भारत है। 22 अक्टूबर को सरकारी खरीद सलाहकार परिषद ने म्यांमार और दुबई से कुल 1,00,000 टन चावल की खरीद को मंजूरी दी। म्यांमार से 50,000 टन अताप चावल और दुबई से 50,000 टन गैर-बासमती पारबॉयल्ड चावल खरीदा जाएगा। इसकी कुल लागत 446.23 करोड़ टका होगी।
     
दुबई के जरिए अफ्रीका-मध्यपूर्व तक जाती है बासमती
वित्त मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा की कि पैकेज-2 के अंतर्गत दुबई स्थित मेसर्स क्रेडेंशियल वन FZCO से 50,000 टन गैर-बासमती पारबॉयल्ड चावल एक अंतरराष्ट्रीय ओपेन टेंडर के माध्यम से 355.99 डॉलर प्रति टन की दर से खरीदा जाएगा। इसकी लागत 216.9 मिलियन टका होगी। म्यांमार से 50,000 टन अताप चावल 'जी टू जी' आधार पर 376.50 डॉलर प्रति टन की दर से खरीदा जाएगा, जिसकी लागत 2.293 अरब टका होगी। दुबई चावल के पुनर्निर्यात का एक प्रमुख केंद्र है। यह भारत से बासमती और गैर-बासमती चावल का आयात करता है और इसे अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों को निर्यात करता है।
   
बांग्लादेश में होता है पर्याप्त चावल, पर रिस्क नहीं
चावल आयात की जरूरत के बारे में मोनिरुज्जमान ने कहा-हमारे पास चावल का पर्याप्त भंडार है। फिर भी जोखिम से बचने के लिए आयात किया जाता है। पिछले साल बाढ़ के बाद कुछ चावल बांटना पड़ा था। इस बार, आयात तुलनात्मक रूप से कम है, केवल एक लाख टन। हर साल कुछ चावल आयात किया जाता है। सरकार की नीति कोई जोखिम नहीं उठाने की है। देश में वर्तमान में लगभग 15 लाख टन चावल का भंडार है, जो सामान्य से ज्यादा है।
   
भारत से मुंह मोड़ने पर बांग्लादेश को नुकसान ही नुकसान
शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश की कमान संभालने वाले मोहम्मद यूनुस सरकार ने चीन और पाकिस्तान के साथ दोस्ती का दम भरना शुरू कर दिया था। बांग्लादेश को आजाद कराने वाले भारत के खिलाफ ही यूनुस सरकार ने मुंह फेर लिया। इससे खुद बांग्लादेश को आर्थिक और राजनीतिक नुकसान हो रहा है। इसमें निर्यात लागत में वृद्धि, व्यापार घाटा बढ़ना, भारतीय बाजार में प्रवेश में बाधाएं और भारत के माध्यम से अन्य देशों तक पहुंचने में मुश्किल शामिल है।
   
लैंड पोर्ट्स बंद होने पर बांग्लादेश की बढ़ी लागत
भारत के लिए महत्वपूर्ण पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने वाले नदी मार्गों का इस्तेमाल घटने से बांग्लादेश को अपनी खुद की लॉजिस्टिक्स में भी समस्या हो सकती है, और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने से सीमा पर भी अशांति बढ़ सकती है। भारत की ओर से लैंड पोर्ट्स बंद किए जाने से बांग्लादेशी उत्पादों को अब समुद्री बंदरगाहों से भेजना पड़ता है, जिससे उनकी लागत और भी बढ़ जाती है। भारत से आयात किए जाने वाले सामानों पर भारी निर्भरता और निर्यात में कमी के कारण बांग्लादेश का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है।
   
चीन से ज्यादा सटने के चलते रेडीमेड कपड़ों पर भी असर
बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट्स के निर्यात, कॉटन और कॉटन यार्न जैसी वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं। लैंड पोर्ट्स बंद होने से भारतीय बाज़ार में बांग्लादेश के उत्पादों को पहुंचाना कठिन हो गया है। चीन पर अधिक निर्भरता के कारण बांग्लादेश को भारत के साथ तनाव को कम करने में मुश्किल हो सकती है। सीमा पर तनाव और बढ़ती भारत-विरोधी भावनाएं बांग्लादेश की सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकती हैं।
   
बांग्लादेश को होगा 77 करोड़ डॉलर का नुकसान
नवभारत टाइम्स पर छपी एक स्टोरी के अनुसार, थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा है कि बांग्लादेश खुद को नुकसान पहुंचा रहा है। वह भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। भारत ने बांग्लादेशी सामानों पर कोई रोक नहीं लगाई है, बल्कि सिर्फ जमीनी रास्तों को सीमित किया है। जीटीआरआई के अनुसार, भारत के इस कदम से बांग्लादेश को लगभग 77 करोड़ डॉलर का नुकसान होगा, जो कि द्विपक्षीय आयात का 42% है।
   
  
भारत का चावल वाया म्यांमार और दुबई
bddigest.com पर छपी एक खबर के अनुसार, बांग्लादेश के खाद्य विभाग के खरीद विभाग के निदेशक मोहम्मद मोनिरुज्जमां ने कहा-चावल आपूर्तिकर्ता का कार्यालय दुबई में है, लेकिन चावल का वास्तविक सोर्स भारत है। 22 अक्टूबर को सरकारी खरीद सलाहकार परिषद ने म्यांमार और दुबई से कुल 1,00,000 टन चावल की खरीद को मंजूरी दी। म्यांमार से 50,000 टन अताप चावल और दुबई से 50,000 टन गैर-बासमती पारबॉयल्ड चावल खरीदा जाएगा। इसकी कुल लागत 446.23 करोड़ टका होगी।
दुबई के जरिए अफ्रीका-मध्यपूर्व तक जाती है बासमती
वित्त मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में घोषणा की कि पैकेज-2 के अंतर्गत दुबई स्थित मेसर्स क्रेडेंशियल वन FZCO से 50,000 टन गैर-बासमती पारबॉयल्ड चावल एक अंतरराष्ट्रीय ओपेन टेंडर के माध्यम से 355.99 डॉलर प्रति टन की दर से खरीदा जाएगा। इसकी लागत 216.9 मिलियन टका होगी। म्यांमार से 50,000 टन अताप चावल 'जी टू जी' आधार पर 376.50 डॉलर प्रति टन की दर से खरीदा जाएगा, जिसकी लागत 2.293 अरब टका होगी। दुबई चावल के पुनर्निर्यात का एक प्रमुख केंद्र है। यह भारत से बासमती और गैर-बासमती चावल का आयात करता है और इसे अफ्रीका और मध्य पूर्व के देशों को निर्यात करता है।
बांग्लादेश में होता है पर्याप्त चावल, पर रिस्क नहीं
चावल आयात की जरूरत के बारे में मोनिरुज्जमान ने कहा-हमारे पास चावल का पर्याप्त भंडार है। फिर भी जोखिम से बचने के लिए आयात किया जाता है। पिछले साल बाढ़ के बाद कुछ चावल बांटना पड़ा था। इस बार, आयात तुलनात्मक रूप से कम है, केवल एक लाख टन। हर साल कुछ चावल आयात किया जाता है। सरकार की नीति कोई जोखिम नहीं उठाने की है। देश में वर्तमान में लगभग 15 लाख टन चावल का भंडार है, जो सामान्य से ज्यादा है।
भारत से मुंह मोड़ने पर बांग्लादेश को नुकसान ही नुकसान
शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश की कमान संभालने वाले मोहम्मद यूनुस सरकार ने चीन और पाकिस्तान के साथ दोस्ती का दम भरना शुरू कर दिया था। बांग्लादेश को आजाद कराने वाले भारत के खिलाफ ही यूनुस सरकार ने मुंह फेर लिया। इससे खुद बांग्लादेश को आर्थिक और राजनीतिक नुकसान हो रहा है। इसमें निर्यात लागत में वृद्धि, व्यापार घाटा बढ़ना, भारतीय बाजार में प्रवेश में बाधाएं और भारत के माध्यम से अन्य देशों तक पहुंचने में मुश्किल शामिल है।
लैंड पोर्ट्स बंद होने पर बांग्लादेश की बढ़ी लागत
भारत के लिए महत्वपूर्ण पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने वाले नदी मार्गों का इस्तेमाल घटने से बांग्लादेश को अपनी खुद की लॉजिस्टिक्स में भी समस्या हो सकती है, और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने से सीमा पर भी अशांति बढ़ सकती है। भारत की ओर से लैंड पोर्ट्स बंद किए जाने से बांग्लादेशी उत्पादों को अब समुद्री बंदरगाहों से भेजना पड़ता है, जिससे उनकी लागत और भी बढ़ जाती है। भारत से आयात किए जाने वाले सामानों पर भारी निर्भरता और निर्यात में कमी के कारण बांग्लादेश का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है।
चीन से ज्यादा सटने के चलते रेडीमेड कपड़ों पर भी असर
बांग्लादेश के रेडीमेड गारमेंट्स के निर्यात, कॉटन और कॉटन यार्न जैसी वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं। लैंड पोर्ट्स बंद होने से भारतीय बाज़ार में बांग्लादेश के उत्पादों को पहुंचाना कठिन हो गया है। चीन पर अधिक निर्भरता के कारण बांग्लादेश को भारत के साथ तनाव को कम करने में मुश्किल हो सकती है। सीमा पर तनाव और बढ़ती भारत-विरोधी भावनाएं बांग्लादेश की सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकती हैं।
बांग्लादेश को होगा 77 करोड़ डॉलर का नुकसान
नवभारत टाइम्स पर छपी एक स्टोरी के अनुसार, थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा है कि बांग्लादेश खुद को नुकसान पहुंचा रहा है। वह भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। भारत ने बांग्लादेशी सामानों पर कोई रोक नहीं लगाई है, बल्कि सिर्फ जमीनी रास्तों को सीमित किया है। जीटीआरआई के अनुसार, भारत के इस कदम से बांग्लादेश को लगभग 77 करोड़ डॉलर का नुकसान होगा, जो कि द्विपक्षीय आयात का 42% है।
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