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भारतीयों के लिए ऐसा कौनसा AI चैटबॉट बना रही मेटा, जिसके लिए जुकरबर्ग हर घंटे खर्च रहे 5000 रुपये

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Meta AI Chatbot in Hindi: AI कंपनियों के बीच चैटबॉट्स बनाने की होड़ मची हुई है। अब मार्क जुकरबर्ग की कंपनी भी अलग-अलग भाषाओं के लिए अपने AI चैटबॉट्स डेवलप कर रही है। इन भाषाओं में हिंदी भी शामिल है, जिसमें चैटबॉट तैयार किया जा रहा है। यह मेटा का एक नया प्रोजेक्ट है, जिसमें हिंदी के अलावा पुर्तगाली, स्पेनिश और इंडोनेशियाई भाषा के चैटबॉट्स भी तैयार हो रहे हैं। चैटबॉट्स को तैयार करने वाले कॉन्ट्रैक्टर्स को मेटा हर घंटे 55 डॉलर यानी करीब 5000 रुपये दे रही है। यानी ये कहा जा सकता है कि मेटा हर घंटे 5000 रुपये खर्च कर भारतीयों के लिए हिंदी AI चैटबॉट बना रही है। चलिए, समझते हैं कि ये कॉन्ट्रैक्टर्स क्या करते हैं और ये AI चैटबॉट्स कैसे खास होने वाले हैं





क्या काम करते हैं कॉन्ट्रैक्टर्स?मेटा द्वारा जिन कॉन्ट्रैक्टर्स को 55 डॉलर प्रति घंटा दिया जा रहा है, वे कहानी लिखने, किरदार बनाने और प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग में माहिर हों। मेटा का मकसद है कि भाषाओं पर बेस्ड चैटबॉट्स इंस्टाग्राम, WhatsApp और मैसेंजर पर लोगों को ऐसा अनुभव दें, जिससे वे सहज हों, चैटबॉट से कनेक्ट होने में आसानी हो। ऐसा झलके जैसे चैटबॉट्स उनके आसपास की ही है।





जुकरबर्ग बोले- चैटबॉट्स असली दोस्तों की तरहमेटा के CEO मार्क जुकरबर्ग का मानना है कि भविष्य में AI चैटबॉट्स लोगों के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन सकते हैं। एक पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि ये चैटबॉट्स असली दोस्तों की तरह लोगों का साथ दे सकते हैं। मेटा चाहती है कि ये चैटबॉट्स अलग-अलग देशों की संस्कृति और भाषा को समझें, ताकि लोग इनसे बात करके सहज महसूस करें। इसीलिए कंपनी अब ऐसे लोगों को हायर कर रही है, जो लोकल कल्चर को अच्छे से जानते हों।





ये प्रयोग भी कर चुकी है मेटायह पहली बार नहीं है जब मेटा AI किरदारों पर काम कर रही है। साल 2023 में कंपनी ने केंडल जेनर, स्नूप डॉग और टॉम ब्रैडी जैसे सेलिब्रिटीज के चैटबॉट्स लॉन्च किए, लेकिन यह प्रोजेक्ट फेल हो गया था। महज एक साल से कम समय में ही प्रोजेक्ट बंद हो गया। इसके बाद 2024 में मेटा ने AI स्टूडियो लॉन्च किया, जिसके जरिए कोई भी अपना चैटबॉट बना सकता है।





AI चैटबॉट्स को लेकर शिकायतेंमेटा AI चैटबॉट्स तो बना रही है, लेकिन इनको को लेकर पहले भी कई शिकायतें आई थीं। एक जांच में पता चला कि ये चैटबॉट्स कभी-कभी गलत मेडिकल सलाह दे देते हैं। कुछ चैटबॉट्स ने नस्लभेदी बातें तक की हैं। इसके बाद अमेरिका के सांसदों ने मेटा से की नीतियों पर सवाल उठाए। कंपनी ने अब अपनी गाइडलाइंस को और सख्त कर दिया है, लेकिन खतरा तो अब भी बना हुआ है।
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