नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देशभर के हाई कोर्ट और निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि जमानत और अग्रिम जमानत की याचिकाओं पर तय समयसीमा में सुनवाई कर निपटारा करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 3-6 महीने के बीच सुनवाई कर अर्जी का निपटारा किया जाए।
स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी होती ऐसी याचिकाएं
जस्टिस जेबी पारदीवाला की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं सीधे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी होती हैं। इन्हें वर्षों तक लंबित नहीं छोड़ा जा सकता, जबकि याचिकाकर्ता अनिश्चितता में फंसा रहता है। कहा कि लंबे समय तक देरी न केवल दंड प्रक्रिया संहिता के उद्देश्य को विफल करती है, बल्कि यह न्याय से वंचित करना भी है, जो संविधान के सिद्धांतों के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट में की अपील
बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं, जिन्हें आईपीसी की धाराओं 420, 463, 464, 465, 467, 468, 471 और 474, धारा 34 के साथ पढ़कर, भूमि की कथित जालसाजी और अवैध हस्तांतरण के मामले में बुक किया गया था। इनमें से दो आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
अर्जी लंबित करने की आलोचना
इस मामले में अग्रिम जमानत याचिका 2019 में दाखिल की गई थी और हाई कोर्ट ने इसे 2025 तक लंबित रखा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हम इस चलन की निंदा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश बरकरार रखा, लेकिन अर्जी लंबित करने की आलोचना की। साथ ही कहा कि अगर आरोपी गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की आजादी होगी।
स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी होती ऐसी याचिकाएं
जस्टिस जेबी पारदीवाला की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं सीधे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी होती हैं। इन्हें वर्षों तक लंबित नहीं छोड़ा जा सकता, जबकि याचिकाकर्ता अनिश्चितता में फंसा रहता है। कहा कि लंबे समय तक देरी न केवल दंड प्रक्रिया संहिता के उद्देश्य को विफल करती है, बल्कि यह न्याय से वंचित करना भी है, जो संविधान के सिद्धांतों के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट में की अपील
बॉम्बे हाई कोर्ट ने तीन आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज कर दी थीं, जिन्हें आईपीसी की धाराओं 420, 463, 464, 465, 467, 468, 471 और 474, धारा 34 के साथ पढ़कर, भूमि की कथित जालसाजी और अवैध हस्तांतरण के मामले में बुक किया गया था। इनमें से दो आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
अर्जी लंबित करने की आलोचना
इस मामले में अग्रिम जमानत याचिका 2019 में दाखिल की गई थी और हाई कोर्ट ने इसे 2025 तक लंबित रखा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हम इस चलन की निंदा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश बरकरार रखा, लेकिन अर्जी लंबित करने की आलोचना की। साथ ही कहा कि अगर आरोपी गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की आजादी होगी।
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