नई दिल्ली   : एमिटी यूनिवर्सिटी में लॉ स्टूडेंट सुशांत रोहिल्ला की सुसाइड मामले में   दिल्ली हाई कोर्ट में आज फिर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली की सभी यूनिवर्सिटी को नसीहत देते हुए कहा कि संस्थान के रूल्स इतने सख्त नहीं हो सकते कि स्टूडेंट्स के लिए मेंटल ट्रॉमा की वजह बन जाएं। बता दें कि 2016 में कथित तौर पर अपेक्षित हाजिरी की कमी की वजह सेमेस्टर एग्जाम्स में बैठने से रोक दिए जाने के बाद सुशांत रोहिल्ला ने खुदकुशी कर ली थी।   
   
कम अटेंडेंस की वजह से एग्जाम देने से नहीं रोक सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह सारे शिक्षण संस्थानों और यूनिवर्सिटी के लिए अनिवार्य होगा कि वे ग्रीवांस रीड्रेसल कमिटी का गठन करें ताकि छात्रों की शिकायतों का समाधान हो सके। वहीं एक अन्य निर्देश में दिल्ली हाईकोर्ट ने बीसीआई को मैंडेटरी अटेंडेंस नॉर्म्स को रीइवैल्यूएट करने के लिए कहा है।
     
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी स्टूडेंट को महज शॉर्ट अटेंडेंस की वजह से एग्जाम देने से नहीं रोका जाएगा। यह निर्देश लीगल एजुकेशन के संबंध में हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि अनिवार्य उपस्थिति मानदंड भी छात्रों को एक विशेष स्थान पर रहने के लिए मजबूर करके रचनात्मक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाते हैं, वह भी कभी-कभी बिना किसी मूल्य सृजन के।
     
उपरोक्त सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, इस बात पर पुनर्विचार करने और अनिवार्य शारीरिक उपस्थिति के तरीके को संशोधित करने की आवश्यकता है तथा बदलते समय के साथ उपस्थिति मानदंडों को कैसे अनुकूलित किया जाना चाहिए।
   
यूनिवर्सिटी को छात्रों को हर तरह की गतिविधियों में शामिल करना चाहिए
यूनिवर्सिटी शिक्षा छात्रों के लिए उनकी युवावस्था के प्रमुख समय में शुरू होती है, इसलिए यहां ध्यान शैक्षिक उत्कृष्टता के साथ-साथ समग्र विकास पर होना चाहिए, जिसमें शारीरिक गतिविधियां जैसे खेल, अतिरिक्त गतिविधियां, नृत्य, संगीत, नाटक शामिल हैं। साथ ही विश्वविद्यालय से बाहर जाने के लिए उनमें सामाजिक कौशल का निर्माण भी शामिल है।
   
हाईकोर्ट ने और क्या कहा?
हाईकोर्ट ने कहा कि क्लासरूम एजुकेशन को व्यावहारिक प्रशिक्षण, न्यायालय प्रणालियों, जेल प्रणालियों, कानूनी सहायता, म्यूट कोर्ट सेमिनारों में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने, मॉडल संसद बहस, अदालती सुनवाई में भाग लेने आदि के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
   
  
कम अटेंडेंस की वजह से एग्जाम देने से नहीं रोक सकते: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह सारे शिक्षण संस्थानों और यूनिवर्सिटी के लिए अनिवार्य होगा कि वे ग्रीवांस रीड्रेसल कमिटी का गठन करें ताकि छात्रों की शिकायतों का समाधान हो सके। वहीं एक अन्य निर्देश में दिल्ली हाईकोर्ट ने बीसीआई को मैंडेटरी अटेंडेंस नॉर्म्स को रीइवैल्यूएट करने के लिए कहा है।
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी स्टूडेंट को महज शॉर्ट अटेंडेंस की वजह से एग्जाम देने से नहीं रोका जाएगा। यह निर्देश लीगल एजुकेशन के संबंध में हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि अनिवार्य उपस्थिति मानदंड भी छात्रों को एक विशेष स्थान पर रहने के लिए मजबूर करके रचनात्मक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाते हैं, वह भी कभी-कभी बिना किसी मूल्य सृजन के।
उपरोक्त सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, इस बात पर पुनर्विचार करने और अनिवार्य शारीरिक उपस्थिति के तरीके को संशोधित करने की आवश्यकता है तथा बदलते समय के साथ उपस्थिति मानदंडों को कैसे अनुकूलित किया जाना चाहिए।
यूनिवर्सिटी को छात्रों को हर तरह की गतिविधियों में शामिल करना चाहिए
यूनिवर्सिटी शिक्षा छात्रों के लिए उनकी युवावस्था के प्रमुख समय में शुरू होती है, इसलिए यहां ध्यान शैक्षिक उत्कृष्टता के साथ-साथ समग्र विकास पर होना चाहिए, जिसमें शारीरिक गतिविधियां जैसे खेल, अतिरिक्त गतिविधियां, नृत्य, संगीत, नाटक शामिल हैं। साथ ही विश्वविद्यालय से बाहर जाने के लिए उनमें सामाजिक कौशल का निर्माण भी शामिल है।
हाईकोर्ट ने और क्या कहा?
हाईकोर्ट ने कहा कि क्लासरूम एजुकेशन को व्यावहारिक प्रशिक्षण, न्यायालय प्रणालियों, जेल प्रणालियों, कानूनी सहायता, म्यूट कोर्ट सेमिनारों में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने, मॉडल संसद बहस, अदालती सुनवाई में भाग लेने आदि के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
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