हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी सड़कों को अक्सर जीवन रेखा कहा जाता है, लेकिन कुछ जगह ये सड़कें अब लोगों के जीवन के लिए खतरा बन गई हैं। मंडी जिले के पंडोह से मनाली तक बने फोरलेन का हाल इस समस्या का स्पष्ट उदाहरण है।
सड़क निर्माण और पहाड़ों पर प्रभावचंडीगढ़-मनाली नेशनल हाईवे के इस हिस्से को तीन साल पहले तैयार किया गया था, लेकिन अब यह भारी क्षतिग्रस्त हो चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि सड़क निर्माण के दौरान पहाड़ों की अवैज्ञानिक 90 डिग्री खोदाई की गई, जो पहाड़ी भू-संरचना के लिए घातक साबित हुई।
बारिश और भूस्खलन की समस्याहिमाचल में बारिश का सामान्य पैटर्न और पहाड़ की मिट्टी की संवेदनशीलता को ध्यान में नहीं रखते हुए निर्माण कार्य किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारी बारिश में पहाड़ जगह-जगह दरक रहे हैं, जिससे सड़कें टूट रही हैं और भूस्खलन के खतरे बढ़ गए हैं।
परिवारों पर असरसड़क निर्माण की इस अव्यवस्थित प्रक्रिया से कई परिवार उजड़ गए हैं। लोगों के घर टूट चुके हैं या टूटने के कगार पर हैं। कई लोग अपने घर छोड़कर अस्थायी शरण स्थल पर रहने को मजबूर हुए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अब वे सड़क और निर्माण कंपनियों के कारण अपने जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं।
विशेषज्ञों की चेतावनीभू-वैज्ञानिक और सिविल इंजीनियर का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क निर्माण अवैज्ञानिक तरीके से नहीं किया जाना चाहिए। 90 डिग्री की खोदाई जैसे काम न केवल भूस्खलन का कारण बनते हैं, बल्कि पर्यावरण और स्थायी जीवन को भी प्रभावित करते हैं।
प्रशासन की भूमिकास्थानीय प्रशासन और सड़क निर्माण एजेंसियों पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे पहाड़ों की सुरक्षा और ग्रामीणों के जीवन को प्राथमिकता दें। अब सवाल उठता है कि क्या भविष्य में ऐसे निर्माण कार्यों में वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके अपनाए जाएंगे।
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