आज के समय में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल केवल संवाद के लिए नहीं रह गया है। समाज के एक बड़े वर्ग ने इसे "स्टेटस सिंबल" यानी सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मान लिया है। लोगों को यह भ्रम होता है कि जो व्यक्ति फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है, वह निश्चित रूप से शिक्षित, समझदार, और उच्च वर्ग का होगा। वह महंगे सूट पहनता होगा, बड़े शहर में रहता होगा और मोटी सैलरी कमाता होगा। लेकिन, यह सोच कई बार न केवल भ्रमित करने वाली होती है, बल्कि जीवन को मुश्किलों में भी डाल सकती है। सोशल मीडिया पर इन दिनों एक ऐसा ही मामला वायरल हो रहा है, जिसने इस विषय को नए सिरे से बहस का मुद्दा बना दिया है।
इंटरनेट पर वायरल हो रहे इस वीडियो में एक महिला (शालिनी पंडित) भावुक होकर कहती है कि “इंग्लिश की वजह से उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई।” यह वीडियो भले ही मजाकिया अंदाज में बनाया गया हो, लेकिन इसमें छिपा संदेश गंभीर है। शालिनी, जो एक कंटेंट क्रिएटर हैं, ने इस वीडियो के जरिए दिखाया कि कैसे अंग्रेजी की चमक-धमक में फंसकर लोग किसी की असलियत पहचानने में चूक कर बैठते हैं।
वीडियो में शालिनी कहती हैं, “शादी से पहले मैंने अपने होने वाले पति से पूछा कि आप क्या काम करते हो?” इस पर उनके पति ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया, “हमारी ऑर्गेनाइजेशन ऑटोमोबाइल्स में डील करती है। मैं गाड़ियों के नीचे के राउंड एलिमेंट्स में डिफेक्ट खोजता हूं और उन्हें सुधारता हूं।”
इस उत्तर को सुनकर शालिनी को लगा कि वह किसी बड़ी कंपनी में इंजीनियर या उच्च पद पर कार्यरत होंगे। उन्हें यह सुनकर गर्व हुआ कि उनके पति इतने अच्छे से अंग्रेजी में अपनी नौकरी का विवरण बता रहे हैं। लेकिन शादी के बाद जब सच्चाई सामने आई तो उनके होश उड़ गए। दरअसल, उनके पति एक पंचर बनाने वाले निकले। यानी वह सड़क किनारे गाड़ियों के टायर ठीक करते थे।
इस मजेदार कहानी के पीछे जो गंभीर बात छिपी है, वह यह है कि हम किसी की भाषा से उसके चरित्र, आय या सामाजिक स्तर का आकलन नहीं कर सकते। अंग्रेजी बोलना न तो किसी की असली काबिलियत का प्रमाण है और न ही उसकी ईमानदारी, मेहनत या सफलता का।
आज की पीढ़ी विशेषकर शहरी युवाओं के बीच अंग्रेजी बोलना एक ट्रेंड बन चुका है। वे मानते हैं कि बिना अंग्रेजी बोले कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती, किसी अच्छे समाज में जगह नहीं बन सकती और यहां तक कि विवाह के रिश्ते भी अब भाषा के आधार पर देखे जाने लगे हैं।
वायरल वीडियो के बाद सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। किसी ने मजाक में लिखा, “हस्बैंड तो काफी होनहार निकला।” एक अन्य यूजर ने कहा, “लो भैया, जिंदगी ही पंचर हो गई।” एक तीसरे ने चुटकी ली, “जो भी कहो, भाईसाहब की अंग्रेजी तो कमाल की थी।”
यह पूरा मामला सिर्फ मनोरंजन के लिए बनाया गया हो सकता है, लेकिन इसमें छुपा सामाजिक संदेश अनदेखा नहीं किया जा सकता। जब हम सिर्फ भाषा के आधार पर किसी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने लगते हैं, तब हम कई बार उन मूलभूत गुणों की अनदेखी कर देते हैं जो वास्तव में किसी व्यक्ति को बेहतर इंसान बनाते हैं – जैसे ईमानदारी, मेहनत, व्यवहार, और सोच।
हमारे समाज में आज भी हजारों ऐसे लोग हैं जो अंग्रेजी नहीं बोलते लेकिन जीवन में ऊंचाइयों को छू चुके हैं। वहीं, कई ऐसे लोग भी हैं जो धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल लेते हैं लेकिन उनका आचरण और सोच बहुत सीमित होती है।
यह जरूरी नहीं है कि जो व्यक्ति अंग्रेजी बोलता है, वह आपसे बेहतर है। यह भी जरूरी नहीं है कि अंग्रेजी बोलना किसी की सफलता का पैमाना हो। भाषा एक माध्यम है, न कि मूल्यांकन का उपकरण। हमें इस भ्रम से बाहर निकलना होगा कि अंग्रेजी ही सब कुछ है।
अंत में, शालिनी पंडित के इस वायरल वीडियो से यही संदेश निकलता है कि भाषा से पहले इंसानियत को पहचानिए। किसी की योग्यता, समझदारी और सोच का आकलन उसकी बातों के मतलब से कीजिए, न कि सिर्फ भाषा की शैली से।
सीख यही है – “इंग्लिश इज़ जस्ट अ लैंग्वेज, नॉट अ स्टेटस सिंबल।”
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