हम सभी के जीवन में रिश्ते सबसे कीमती होते हैं—माता-पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी, दोस्त और साथी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन मजबूत रिश्तों में अचानक खटास क्यों आ जाती है? छोटी-छोटी बातों पर दूरियां क्यों बढ़ जाती हैं? इसके पीछे अक्सर एक ही वजह होती है—अहंकार।अहंकार एक ऐसा भाव है जो धीरे-धीरे मन में घर कर लेता है और इंसान को यह भ्रम दे देता है कि "मैं सबसे बड़ा हूं", "मैं हमेशा सही हूं", या "मुझे किसी की ज़रूरत नहीं है"। यही सोच धीरे-धीरे हमें अपने अपनों से दूर कर देती है। यह एक ऐसा विष है जो रिश्तों को अंदर ही अंदर खोखला कर देता है और जब तक हमें इसका एहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
अहंकार होता क्या है?
अहंकार यानी 'इगो'—यह आत्मसम्मान नहीं, बल्कि आत्म-भ्रम होता है। आत्मसम्मान हमें विनम्र बनाता है, जबकि अहंकार हमें कठोर और जिद्दी बना देता है। जब कोई इंसान अपनी राय को सर्वोपरि समझने लगता है, दूसरों की भावनाओं की कद्र नहीं करता, और अपनी गलती स्वीकारने से इनकार करता है, तो समझिए कि वह अहंकार के वश में है।
कैसे करता है अहंकार रिश्तों को बर्बाद?
संवादहीनता बढ़ाता है
अहंकारी व्यक्ति माफी नहीं मांगता, न ही दूसरों की बात सुनता है। इससे संवाद खत्म हो जाता है, और दूरी बढ़ती जाती है।
सम्मान की कमी
जब आप बार-बार ये जताते हैं कि 'मैं ही सही हूं', तो सामने वाला अपमानित महसूस करता है। रिश्तों में सम्मान एक बार टूट जाए तो उसे वापस पाना मुश्किल हो जाता है।
माफी से दूरी
अहंकार माफ करने की शक्ति को खत्म कर देता है। हम गलती को मानने से बचते हैं, जिससे छोटी बात बड़ी बन जाती है।
समर्पण का अंत
हर रिश्ता त्याग और समझौते से चलता है। लेकिन जब अहंकार हावी हो जाता है, तो 'मैं' और 'मेरा' सबसे बड़ा बन जाता है, और 'हम' खत्म हो जाता है।
अहंकार का अंजाम—अकेलापन और पछतावा
जो लोग अहंकार में जीते हैं, धीरे-धीरे उनके जीवन में अकेलापन घर कर जाता है। शुरुआत में उन्हें लगता है कि वह खुद ही सब कुछ हैं, लेकिन समय के साथ जब न कोई साथ देता है, न सुनता है, तो अहंकार चुभने लगता है।
उस समय पछताने का कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि जिन्हें आपने अहंकार में खो दिया, वे लौटकर नहीं आते।
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स्वयं को समझें, दूसरों को भी समझने की कोशिश करें
आत्ममंथन करें—क्या आपकी जिद और राय दूसरों के लिए तकलीफदायक तो नहीं? हर समय सही होना जरूरी नहीं।
माफी मांगना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है
माफ कर देना और माफी मांगना दोनों ही रिश्तों को संजीवनी देते हैं। इससे आत्मा हल्की होती है और संबंध मजबूत।
ध्यान और आत्म-नियंत्रण करें
रोज़ 10 मिनट ध्यान करें, जिससे आप अपने भीतर झांक सकें और भावनाओं पर नियंत्रण पा सकें।
'मैं' को हटाकर 'हम' सोचें
रिश्तों में 'हम' की भावना रखें। ये समझें कि हर रिश्ता दो लोगों की भागीदारी से चलता है।
सकारात्मक लोगों के साथ रहें
ऐसे लोगों के साथ रहें जो विनम्र हों, अहंकार से मुक्त हों। ऐसे माहौल से सीख मिलती है।
धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ें
गीता, उपनिषद, और संतों के विचार अहंकार को त्यागने की राह दिखाते हैं।
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