भारतीय धर्म और संस्कृति में भगवान हनुमान को विशेष स्थान प्राप्त है। वे केवल एक रामभक्त नहीं बल्कि शक्ति, बुद्धि और भक्ति के त्रिवेणी संगम हैं। हर मंगलवार और शनिवार को करोड़ों लोग उन्हें संकटमोचन मानकर उनकी पूजा करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हनुमान जी को ये अपार शक्तियां आखिर मिली कैसे?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार हैं। यानी शिव जी ने स्वयं एक उद्देश्य के लिए धरती पर जन्म लिया – श्रीराम की सहायता के लिए। तो क्या यह शक्तियां उन्हें शिव से मिली थीं? क्या शिव का आशीर्वाद ही उनकी महाशक्ति का कारण था? इस लेख में हम आपको उसी पौराणिक कथा के माध्यम से बताएंगे कि कैसे शिव कृपा से हनुमान जी बने 'विराट बलशाली महापुरुष'।
हनुमान जी का जन्म: शिव तत्व का अवतरणपौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब रावण के अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ने लगे, तब देवताओं ने श्रीहरि विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वचन दिया कि वे राम के रूप में अवतार लेंगे। लेकिन राम को एक सच्चे, शक्तिशाली और निष्ठावान भक्त-सहयोगी की आवश्यकता होगी।
इसी समय भगवान शिव ने घोषणा की कि वे भी एक वानर योद्धा के रूप में अवतरित होंगे। उन्होंने अपनी शक्ति का अंश वानरराज केसरी और अंजना को सौंपा। फलस्वरूप हनुमान जी का जन्म हुआ – एक दैविक संतान, जिनमें शिव का तेज और शक्ति समाहित थी।
शिव के आशीर्वाद से मिले दिव्य गुणहनुमान जी में जो असाधारण गुण दिखते हैं – जैसे
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आकाश में उड़ने की शक्ति
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पर्वतों को उठाने की क्षमता
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अग्नि और जल में विचरण करने की शक्ति
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युद्ध में असाधारण बल और चपलता
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ज्ञान और नीतिबुद्धि
ये सभी शक्तियां उन्हें शिव कृपा से प्राप्त हुई थीं।
भगवान शिव ने केवल उन्हें उत्पन्न नहीं किया, बल्कि उनके लिए विशेष वरदान भी दिए। जैसे:
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कोई भी अस्त्र-शस्त्र उन्हें हानि नहीं पहुंचा सकता।
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उनका शरीर वज्र समान अटूट रहेगा।
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वे अनंत आयु तक जीवित रहेंगे जब तक धरती पर धर्म की रक्षा का कार्य शेष है।
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वे समय आने पर ब्रह्मज्ञान और योगबल प्राप्त करेंगे।
हनुमान जी बचपन में अपनी शक्तियों से अनजान थे। एक बार उन्होंने सूर्य को ही फल समझकर निगल लिया था। इस घटना से देवता भयभीत हो गए थे। तब इंद्र ने वज्र से प्रहार किया, जिससे हनुमान मूर्छित हो गए। यह देखकर वायु देव नाराज हो गए और प्राणवायु को रोक लिया।
तब सभी देवताओं ने आकर हनुमान जी को विशेष वरदान दिए। लेकिन सबसे प्रमुख वरदान शिव का था, जिन्होंने कहा:
हनुमान जी और शिव तत्त्व का संबंध"हे पुत्र! तू मेरे ही अंश से उत्पन्न हुआ है, इसलिए तुझमें अपार बल और पराक्रम होगा। तेरे समक्ष कोई भी दैत्य या दुष्ट बल नहीं टिक पाएगा।"
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हनुमान जी राम भक्त हैं और राम विष्णु के अवतार हैं।
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शिव जी को 'रामेश्वर' कहा गया क्योंकि उन्होंने स्वयं राम की पूजा की।
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इस प्रकार, हनुमान शिव का अवतार होकर विष्णु (राम) की सेवा करते हैं, जो त्रिमूर्ति के संतुलन को दर्शाता है।
हनुमान जी केवल शक्ति के प्रतीक नहीं, बल्कि भक्ति और विनम्रता का भी आदर्श हैं। वे शक्तिशाली होने के बावजूद गर्व नहीं करते, बल्कि राम चरणों में समर्पित रहते हैं। यही शिव तत्त्व की सच्ची अभिव्यक्ति है।
निष्कर्षपौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी को जो अपार शक्तियां प्राप्त हुईं, वे भगवान शिव की ही कृपा से संभव हुईं। वे शिव के अंशावतार हैं और इसलिए उनके भीतर शिव जैसी ही तेजस्विता, संयम और भक्ति देखने को मिलती है।
आज भी यदि कोई भक्त सच्चे मन से हनुमान जी की पूजा करता है, तो उसमें आत्मबल, साहस, निर्भयता और आस्था का संचार होता है – क्योंकि हनुमान जी केवल एक देवता नहीं, बल्कि दिव्य चेतना के सजीव स्वरूप हैं।
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