कहा जाता है कि सिख धर्म के प्रचार-प्रसार के दौरान नानक देव भी राजस्थान आए थे, तब उन्होंने पुष्कर में कई बड़े धार्मिक लोगों से मुलाकात की थी। उनके बाद 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह भी राजस्थान आए थे। उन्होंने जयपुर जिले के नरेना गांव में 13 दिनों तक डेरा डाला था। गुरु गोविंद सिंह 1706 से 1707 के बीच मार्च के महीने में नरेना आए थे। इसके बाद वे पुष्कर गए और गुरु नानक साहिब के चरण कमलों के दर्शन किए। साल 1511 के नवंबर महीने में सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव पुष्कर आए थे। यह वह समय था जब देश में औरंगजेब का आतंक था और उसके उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष भी चल रहा था। इस बीच गुरु गोविंद सिंह औरंगजेब के बड़े बेटे बहादुर शाह जफर को गद्दी दिलाने की कोशिश कर रहे थे। वे लगातार अलग-अलग रियासतों से संवाद कर रहे थे। इसी सिलसिले में तलवंडी साहिब से नांदेड़ साहिब जाते समय उन्होंने नरेना में विश्राम किया, जहां दादू पंथ की बड़ी गद्दी है।
बाज ने खाया बाजरा और ज्वार
जब गुरु गोविंद सिंह यहां तत्कालीन पीठाधीश्वर से मिले तो उन्होंने गुरु जी को भोजन के लिए आमंत्रित किया। कहा जाता है कि खालसा धर्म के संस्थापक अपने प्रिय बाज के साथ भोजन के लिए आए थे और दादू धाम जाकर उन्होंने कहा कि सबसे पहले बाज को भोजन परोसा जाए। इस पर दादू महाराज जैतराम जी ने बाज को बाजरा और ज्वार परोसा और मांसाहारी भोजन पसंद करने वाले बाज ने भी इसे खाया। इसके बाद गुरु गोविंद सिंह भी दादू आश्रम आए और प्रसाद ग्रहण किया।
ज्ञानी जैल सिंह ने रखी थी गुरुद्वारे की नींव
सिख धर्म का नरेना से अनूठा नाता है। राष्ट्रपति रहते हुए ज्ञानी जैल सिंह ने नरेना गुरुद्वारे की आधारशिला रखी और गुरुद्वारा चरण कमल साहिब की नींव रखी। जब गुरुजी ने सिखों की परीक्षा ली गुरुद्वारे के ग्रंथी ने बताया कि सिख संगत धर्म में परिपक्व है या नहीं, यह जानने के लिए गुरु जी ने दादू दयाल में बनी समाधि पर अपना तीर झुकाया, जिसे सिख नियमों के विरुद्ध माना जाता है। जब उनके साथ आए सिखों ने गुरु जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उनकी मर्यादा की परीक्षा ले रहे थे।
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