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1448 में राणा कुंभा द्वारा निर्मित विजय स्तंभ जहाँ देखने को मिलती है रामायण-महाभारत की झलकियां, वीडियो में जाने इसका गौरवशाली इतिहास

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चित्तौड़गढ़ की पहचान के रूप में स्थापित विजय स्तंभ, जिसे "विजय टॉवर" के रूप में भी जाना जाता है। विजय स्तंभ का निर्माण मेवाड़ के राजा राणा कुंभा ने 1448 में महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए करवाया था।


इस भव्य स्तंभ का निर्माण 1458 से 1488 के बीच हुआ था। अपने विशाल स्वरूप के कारण यह शहर के किसी भी कोने से दिखाई देता है। इस वीडियो में हम आपको विजय स्तंभ के बारे में हर छोटी-बड़ी जानकारी बताने जा रहे हैं। विजय स्तंभ भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसमें कई हिंदू देवी-देवताओं की नक्काशी और मूर्तियां हैं। इस टॉवर के अंदरूनी हिस्से में उस समय इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार, संगीत वाद्ययंत्र और अन्य उपकरण हैं। यह राजपूतों द्वारा अपनाई जाने वाली धार्मिक बहुलता का एक बेहतरीन उदाहरण है। विजय स्तंभ की सबसे ऊंची मंजिल पर रानी पद्मावती की छवि उकेरी गई है। इसके अलावा तीसरी मंजिल पर अरबी भाषा में 9 बार अल्लाह शब्द भी उकेरा गया है। विजय स्तम्भ शानदार वास्तुकला का नमूना है, जो शहर में आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है और उन्हें भारत के इतिहास पर गर्व महसूस कराता है।

विजय स्तम्भ 122 फीट ऊंची 9 मंजिला संरचना है, जो भारतीय और राजपूत वास्तुकला का एक बहुत ही अद्भुत और सुंदर नमूना है। विजय स्तम्भ नीचे से चौड़ा, बीच से संकरा और ऊपर से चौड़ा है, जिसके कारण इसका आकार डमरू जैसा दिखता है। इस शानदार इमारत में ऊपर जाने के लिए लगभग 157 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। वर्ष 1448 में मेवाड़ के राजा राणा कुंभा ने उस समय के महान वास्तुकारों के मार्गदर्शन में इस अद्भुत संरचना का निर्माण कराया था। विजय स्तम्भ के आंतरिक भागों में हिंदू देवी-देवताओं, विष्णु के विभिन्न अवतारों और रामायण और महाभारत के कई पात्रों की मूर्तियाँ हैं। लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बनी यह नौ मंजिला इमारत अपने आप में एक जटिल ज्यामितीय संरचना है।

विजय स्तम्भ की ऊपरी मंजिल पर एक पत्थर की पट्टिका उकेरी गई है, जो चित्तौड़गढ़ के शासकों और उनकी बहादुरी के बारे में जानकारी देती है। यह अद्भुत कार्य राणा कुंभा के दरबारी विद्वान अत्रि और उनके पुत्र महेश ने किया था। इस भव्य इमारत को बनाने वाले वास्तुकारों के नाम भी स्तंभ की 5वीं मंजिल पर उत्कीर्ण हैं।

अगर आप विजय स्तंभ देखने का प्लान बना रहे हैं, तो यहां आने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का है। विजय स्तंभ को देखने के लिए रात का समय चुनना सबसे अच्छा रहेगा, क्योंकि शाम की रोशनी में यह स्तंभ बेहद आकर्षक लगता है। इसके साथ ही शाम के सुहाने मौसम में आप इस भव्य स्तंभ को देखने का और भी आनंद ले पाएंगे।

विजय स्तंभ चित्तौड़गढ़ की मुख्य संरचना है, जो उदयपुर शहर से करीब 112 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर का डबोक हवाई अड्डा है, जो चित्तौड़गढ़ से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेल मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ है, जो यहां से करीब 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी बस स्टेशन चित्तौड़गढ़ है, जो यहां से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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