कोलकाता, 08 अप्रैल . आईआईटी-खड़गपुर के एक नए अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि सतही ओजोन प्रदूषण भारत की प्रमुख खाद्य फसलों की पैदावार पर गंभीर असर डाल सकता है. संस्थान के सेंटर फॉर ओशन, रिवर, एटमॉस्फियर एंड लैंड साइंसेज (सीओआरएएल) के प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टिपुरथ और उनकी टीम द्वारा किए गए इस शोध में यह खुलासा हुआ है.
अध्ययन के अनुसार गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख भारतीय और वैश्विक खाद्य फसलें सतही ओजोन प्रदूषण के बढ़ते खतरे के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं. शोध ‘सर्फेस ओजोन पॉल्यूशन-ड्रिवन रिस्क्स फॉर द यील्ड ऑफ मेजर फूड क्रॉप्स अंडर फ्यूचर क्लाइमेट चेंज सिनैरियोज इन इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है.
आईआईटी-खड़गपुर के प्रवक्ता के मुताबिक, सतही ओजोन एक शक्तिशाली ऑक्सीडेंट है जो पौधों की ऊतक संरचना को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पत्तियों पर स्पष्ट चोट के निशान दिखाई देते हैं और फसलों की उत्पादकता घटती है. अध्ययन में ‘कपल्ड मॉडल इंटरकंपैरिजन प्रोजेक्ट फेज-6’ (सीएमआईपी6) के आंकड़ों का विश्लेषण कर इतिहासिक प्रवृत्तियों और भविष्य के परिदृश्यों के आधार पर ओजोन के कारण फसल हानि का आकलन किया गया.
शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि यदि उत्सर्जन कम करने के उपाय प्रभावी रूप से लागू नहीं किए गए, तो उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों में गेहूं की पैदावार में अतिरिक्त 20 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है, जबकि चावल और मक्का की पैदावार में लगभग सात प्रतिशत की गिरावट आ सकती है.
विशेष रूप से इंडो-गंगा के मैदानी इलाकों और मध्य भारत को सतही ओजोन प्रदूषण के अत्यधिक जोखिम वाला क्षेत्र बताया गया है, जहां ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा से छह गुना तक अधिक हो सकता है. अध्ययन में यह भी चेताया गया है कि इस प्रकार की फसल क्षति से वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर असर पड़ सकता है, क्योंकि भारत एशिया और अफ्रीका के कई देशों को खाद्यान्न निर्यात करता है.
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि यदि प्रभावी उत्सर्जन नियंत्रण रणनीतियों को अपनाया जाए, तो कृषि उत्पादकता में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है और वैश्विक खाद्य आपूर्ति को सुरक्षित किया जा सकता है. यह अध्ययन प्रतिष्ठित पत्रिका ‘एनवायर्नमेंटल रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ है.
/ ओम पराशर
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