Next Story
Newszop

(अपडेट) अंधविश्वासी नहीं, कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए करते हैं प्रकृति पूजा : इंदर सिंह

Send Push

image

image

भोपाल, 3 मई .हम प्रकृति को पूजते थे तो हमेंअंधविश्वासी कह दिया गया. लेकिन हम अंधविश्वासी नहीं अपितु कृतज्ञता ज्ञापित करतेहैं क्योंकि प्रकृति हमारा पोषण करती है. जो हमारी सहायता करता है, उस अजनबी को भी हम धन्यवाद ज्ञापित करते हैं. यह हमारी परंपरा है. आज अपनीपरंपराओं का वैज्ञानिक ढंग से शोध करने और दुनिया के सामने लाने की आवश्यकता है.यह विचार उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने व्यक्त किए.

दत्तोपन्तठेंगड़ी शोध संस्थान द्वारा आयोजित और आईसीएसएसआर द्वारा प्रायोजित ‘युवा सामाजिक विज्ञान संकाय के लिए दो सप्ताह का दक्षता निर्माण कार्यक्रम’के समापन सत्र में शनिवार को उन्होंने युवा प्राध्यापकों के बीच कहा कि किसी देश के विद्वान ने कुछ लिख दिया,उसे ही हम प्रमाण मान कर आगे बढ़ जाते थे. हमारी परंपरा में उस विषय को लेकर देखने की हमारी आदत ही नहीं थी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने हमें एक अवसर दिया है कि हम विभिन्न मुद्दों और विषयों को भारतीय दृष्टि से देखें.

उन्होंने कहा कि लंबे समय तक हमें कहा गया कि हम अज्ञानी और निरक्षर थे लेकिन कभी हमने सोचा हीनहीं कि बिना ज्ञान के क्या हम विश्वगुरु हो सकते थे? हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए ज्ञान की परंपरा छोड़ी है, उसको वर्तमानके संदर्भों में देखना चाहिए. उन्होंने कहा कि पेड़ों को इसलिए पूजते हैं क्योंकिवे हमें प्राणवायु देते हैं. जल स्रोतों को पूजने की परंपरा इसलिए है क्योंकि जलके बिना हमारा जीवन संभव नहीं है. सूर्य ऊर्जा का केंद्र है, इसलिए हम उसे पूजते हैं. आज इस परंपरा का वैज्ञानिक ढंग से शोध करने औरदुनिया के सामने लाने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा कि लंबेसमय तक दुनिया कहती रही कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगाता है जबकि हमारे ऋषि कह रहेथे कि सूर्य केंद्र में है, पृथ्वी चक्कर लगाती है. यहबात बिना किसी अध्ययन और शोध के हमारे ऋषियों ने कही होगी क्या? हमारे वेदों पर शोध किये बिना ही उन्हें गड़रियों के गीतों का संग्रह कहदिया गया जबकि उनमें ज्ञान-विज्ञान का खजाना है.

आपने स्वामी विवेकानंद काउदाहरण देकर कहा कि शिकागो धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का अपमान करने के उद्देश्यसे श्रीमद्भागवत को सबसे नीचे रख और अन्य संप्रदायों के ग्रंथ उसके ऊपर रखे गए.स्वामी विवेकानंद ने इसका बहुत बढ़िया उत्तर दिया. उन्होंने कहा कि दुनिया का समूचेदर्शन और ज्ञान का आधार श्रीमद्भागवत है. सब श्रीमद्भागवत पर ही टिका हुआ है.उन्होंने कहा कि जो लोग कहते हैं, वेद गड़रियों के गीत हैं,उनके लिए हमारा उत्तर होना चाहिए कि उस समय ज्ञान के क्षेत्र मेंभारत का स्थान इतना अधिक ऊंचा था कि हमारे गड़रिये भी उच्च कोटि के विद्वान थे.उन्होंने बोधायन प्रमेय का उदाहरण देकर बताया कि हमने गणित में बहुत विकास किया लेकिन इसके बाद भी हमें पश्चिम के विद्वान ही पढ़ाये गए. आर्यभट्ट ने 1400 साल से पहलेपृथ्वी का व्यास निकाला. शून्य और दशमलव भारत ने दुनिया को दिए. लेकिन हम अपनेपाठ्यक्रमों में यह नहीं पढ़ते थे. इतिहास को भी इसी प्रकार पढ़ाया गया.

उच्च शिक्षामंत्री ने कहा कि हम सूर्यास्त के बाद पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाते. यह हमारीपरंपरा में है. लेकिन हमारे वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बसु ने सिद्ध किया कि इस परंपराके पीछे विज्ञान है. उन्होंने सिद्ध किया कि पेड़ों में भी जीवन होता है. आज दुनिया हम से इसी प्रकार के प्रमाण मांग रही है.

इस अवसर पर दत्तोपन्तठेंगड़ी शोध संस्थान के सचिव डॉ. उमेश चंद्र शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम के प्रारंभ में निदेशक डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने कार्यक्रम का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. उन्होंने बताया कि देशभर से 100 से अधिक आवेदन आये थे. चयन के बाद 33 प्रतिभागी इसमें शामिल हुए, जिनमें17 महिलाएं रहीं. देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये 30 विद्वान वक्ताओं ने युवा प्राध्यापकों के साथ विभिन्न विषयों पर संवाद किया. इस अवसर पर प्रतिभागियों नेअपने अनुभव भी साझा किए. एनआईटीटीटीआर में आयोजित इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में एनआईटीटीटीआरके निदेशक डॉ. चन्द्र चारु त्रिपाठी, दक्षता निर्माणकार्यक्रम की संयोजक प्रो. अल्पना त्रिवेदी भी उपस्थित रहे.

—————

/ डॉ. मयंक चतुर्वेदी

Loving Newspoint? Download the app now