हमीरपुर, 18 अप्रैल . विमर्श के युद्ध में शब्द और शब्दावली प्रमुख अस्त्र होते हैं. यह विमर्श वाद-विवाद से नहीं, बल्कि संवाद से बनते हैं. हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के उपाध्यक्ष प्रोफेसर कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने यह बात विश्व संवाद केंद्र हिमाचल प्रदेश की ओर से शुक्रवार को हमीरपुर में आयोजित एक दिवसीय स्तंभकार कार्यशाला में कही.
प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि राष्ट्र एवं समाज के हित को ध्यान में रखते हुए नकारात्मक शब्दावली को प्रारम्भ में ही निष्क्रिय कर देनी चाहिए. विमर्शों के इस युद्ध में विश्वविद्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है. उन्होंने कहा कि भारत का विचार और संस्कृति स्वयं को कभी भी केंद्रित नहीं करते. भारत एक निरंतर चलने वाली यात्रा है. इसमें कभी भी ठहराव नहीं आता. भारतीय विचार की तरह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी एक निरंतर प्रवाहवान यात्रा है.
प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को तोड़ने के लिए कई विभाजनकारी नेरेटिव चलाए. जाति व्यवस्था को हिंदू होने का पर्याय बना दिया गया है. इस प्रकार विराट एवं संगठित भारतीय समाज को विभाजित करने का षड्यंत्र अंग्रेजों ने रचा. भारतीय समाज इसकी क्षति आज तक झेल रहा है. विकसित भारत-2047 के संकल्प को प्राप्त करने की दिशा में इन विभाजनकारी विमर्शों को तोड़ना अत्यंत आवश्यक हो गया है.
वहीं, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी के प्रो. सतीश ने कहा कि संविधान की मूल प्रति में दिए गए चित्र यह बताते हैं की संवैधानिक राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में अंतर नहीं है. इस कार्यशाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख प्रताप सिंह समयाल सहित प्रदेश भर के स्तंभकारों, साहित्यकारों एवं ब्लॉगरों ने भाग लिया.
कार्यशाला में प्रो. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने शारदा स्तुति पुस्तक का विमोचन भी किया. हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कश्मीर अध्ययन केंद्र के शोधार्थी प्रवीण कुमार और आदित्य अवस्थी ने इस किताब को लिखा है. प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि भारतीय विमर्श को गढ़ने में और शारदा लिपि के पुनरुत्थान में यह पुस्तक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होगी.
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शुक्ला
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